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कितना कोशिश कितना पानी

दोस्तों ब्लोग बनाने के लिए हमने कितनी कोशिश किया परंतु अभी भी सफलता नही मिल रही है. तुम कितनी हसिन है यह केवल मैं जनता हूँ, लाख भाग ले हमसे, हम तेरा साथ न छोड़ेगे, लोग चाहते हैं पीना सूरूरी नशीली आंखें, नही देख पाते सौम्य शीतन चितवन कह दो उनसे तुम रोते हुए हँसता रह, हमें तो सवन की बहार मिल गई है.

हिन्दी और अंग्रेजी तथा भारत

हिन्दी और अंग्रेजी तथा भारत एक आलेख वैश्वीकरण का युग है दुनिया एक गाँव में बदल रही है. भारत भी इस दुनिया का एक हिस्सा है अत: यह भी इस प्रक्रिया में सम्मिलित है परंतु भारत देश की जनसंख्या का बहुत ही कम हिस्सा इस खेल में सम्मिलित है जिसका अधिकतम प्रतिशत 10 से कम है जबकि भारत के साथ स्वतंत्र हुआ देश चीन सभी क्षेत्रों में हमसे बहुत आगे जा चुका है. इसका कारण क्या है? क्या इस देश के नीति-निर्माताओं ने सोचा? क्यों अभी तक हम आम नागरिकों को प्रगति की धारा से नहीं जोड़ पाए? ज़रा सोचें-विचारें- यदि हम दुनिया के विकसित और विकासशील देशों को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो तीन वर्ग दिखाई देता है- 1.अमेरिका-यूरोप- अंग्रेजी अन्य निकटतम भाषा-भाषी 2.जापान-कोरिया-चीन-चित्रात्मक भाषा 3.भारत-दक्षिण एशिया- हिन्दी और अन्य भाषा-भाषी 1.अमेरिका-यूरोप- अंग्रेजी अन्य निकटतम भाषा-भाषी: अमेरिका,कनाडा, इंगलैण्ड, फ्रंस, जर्मनी, इटली आदि देशों के नागरिकों के विकास के पिछे भिन्न-भिन्न कारण हैं अमेरिका ,कनाडा और आस्ट्रेलिया आव्रजित (माइग्रेटेड) जनसंख्या के देश हैं यहाँ बहुभाषा समूह

हम क्या करें

श्रीमानजी, नमस्कर! मै आप से निवेदन करना चाहता हूँ कि मै एक युवा हिन्दी अध्यापक हूँ जो जवाहर नवोदय विद्यालय कानकोण में सम्प्रति कार्यरत हूँ मुझे कम्प्युटर का थोड़ा बहुत अनुप्रयोगात्मक ज्ञान है और थोड़ा बहुत ही अंग्रेजी का भी ज्ञान है मेरी रुचि लेखन तथा कम्प्युटर तकनीक का प्रयोग कर पढ़ाने में है जैसे अंग्रेजी माध्यम द्वारा इसका प्रयोग किया जा रहा है , परंतु हमारी कठिनाई यह है कि हमारे पास जो साधन हैं जैसे ime(Microsoft),baraha and Hindi writer पर ,ऐ साधन प्रतेक जगह कार्य नहीं करते है जैसे पॉवर पॉइंट,एक्षेल आदि. वर्तनी सुधारक यदि कोई बनाया जाय तो और अछा होगा. महोदय क्या की-बोर्ड वैज्ञानिक नहीं बनाया जा सकता जिसमें सभी आवश्यक संकेत चिन्ह हों और मानक हो.यदि आप के पास कोई सरल हल हो तो बताने कि कृपा करॆं. अन्यथा हमारा जैसे लोग भी अंग्रेजी का प्रयोग करने के लिए मज़बूर हो जाएंगे. जहाँ तक मै समझता हूँ कि हिन्दी पीछे इस लिए नहीं कि इसका प्रयोग करने वाले कम हैं बल्कि इस लिए पीछे है कि यह तकनीकी रुप से पीछे है. यहाँ मेरी समस्याएं और भावनाएं थीं अछा लगे तो अछा है खराब लगे तो क्षमा करें.