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हिन्दी या हिंदी क्या सही है के बहाने

दोस्तों ,   हिन्दी या हिंदी में कोई गलती नहीं है. क्योंकि सभी पंचमाक्षर ध्वनिया ही नासिक्य व्यंजन ही हैं जिसे (अं) अनुस्वार कहते हैं , कवर्ग , चवर्ग , टवर्ग , तवर्ग , और पवर्ग पहले आने पर इसे उसी वर्ग के पाँचवें व्यंजन के अनुसार उच्चारित किया जाता है. अन्यथा उसे अनुस्वार (अं) के अनुसार उच्चारित किया जाता है. जिसका चिह्न है- (ं) जैस-  कंठ = कण्ठ पढ़ते हैं जबकि संयम = सअं+यम = सम्+यम। अतः इसमें हिंदी और संस्कृत की केवल लिखने के तरीके अलग हैं परंतु पढ़ने के एक समान हैं। हाँ (ँ) यह चिह्न अनुनासिक स्वर है. अनुनासिक स्वरों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. जैसे हँस  और हंस मैं अंतर है. इनका वर्ण विच्छेद इस प्रकार किया जाना चाहिए. जैसे- ह+अँ+स = हँस जबकि ह+अं+स = हंस होता है. अतः हिंदी = हिन्दी हैं  इसमें कोई गलती नहीं है. हाँ यदि गलती सुधारना है और हिंदी को तीव्रतर करना है तो डॉक्टर , आॉफ़िस , ब्लॉग आदि के  स्थान पर उन शब्दों को लोक प्रचलित रूप डाक्टर , आफिस , ब्लाग ही लिखें ताकि हिंदी भाषा की स्वाभाविकता प्रभावित न हो. यदि अँग्रेजी शब्दों का अँग्रेजी उच्चारण (प्रोनन्सिअसन) करने का श
क्या आप को ऐसा नहीं लगता: सभी नारा तो लगाते है. सब लोग बराबर हैं, सबका हितैषी बनने की घड़ियाली आँसू गिराई जाती है. परंतु इस देश में हर पद और संस्थान में एक ऐसे वर्ग का कब्ज़ा हैं जो विशेष कर पिछड़े, दलितों, आदिवासियों से कहीं न कहीं नफरत करता है. उसकी मानसिकता इन्हें कमजोर और बुद्धिहीन सिद्ध करने की कोशिश करती रहती है. खुद को उच्चता के गर्व से भरी रहती है. वास्तव में साधन संपन्नता के बावजूद ये लोग योग्यता में हर दम पीछे रहते हैं. केवल छल-कपट और 420 से आगे निकल जाते हैं. क्योंकि ये एक बुरी सोच के साथ संगठित होते हैं कि ये उच्च है, बाकी सभी इनके सेवक हैं. संगठित होने की वजह से सफल होते हैं और योग्य लोग असफल होते हैं। झुकने और चापलूसी करने, दूसरों की शिकायत करने में इस वर्ग को महारत हासिल है. ये गद्दारी करने में भी आगे रहते हैं. ये कौन हैं? इन्हे पहचाने, नहीं तो विकास नहीं हो पायेगा. यह वर्ग हमेंशा यह कोशिश करता है कि देश की बोली-भाषा कभी प्रशासन और न्याय की भाषा न बने. दरअसल हिंदी की ये रोटियाँ खाते हैं लेकिन उसे विकसित और प्रसारित नहीं होने देते हैं. क्योंकि यह सक्षम तबका अंग्रेजी
पेंटिंग करने वाला मजदूर बड़ी मुश्किल से नबोदय विद्यालय में मिलता है ? रूम हिंदी के लिए काणकोण में, पिछले दस वर्षों के इन्तजार के बाद मिला एक छोटा-सा रूम श्री एस. कन्नन के कारण खिल गया मन में गुलाब साल बाद बड़ी तमन्ना से बिल्डिंग पेंटिंग के साथ उसे भी पेंट कराया बिश्वास कर रूम की चाभी दे दिया मजदूर को, वह अच्छे से इसे पेंट कर देगा ! .....तीन दिन बाद किया, उसने पेंटिंग कुछ छूटा-छूटा- सा खो दिया चाभी बेचारा ! डर से तैयार था, बदलने के लिए ताला कहाँ उसे,   हुक से निकालने को केवल ताला कहाँ उसने दोपहर करेंगे, हो गई शाम, दूसरे दिन सुबह वही हालत पाया क्रोध आया, क्यों झूठ बोला ? क्या सभी वचनहीन हो गए ? दया करना, झूठ हो गया क्या मक्कारी ही यहाँ खून में है ? मन में सबक सिखाने का संकल्प किया नौ बजे दूसरे दिन वह आया और बोला- साहब ! लो अपनी क़ीय़ अन्तर्मन बोला, तुम कितना गलत सोचा ? अभी भी बाकी है----- ईमानदारी, सच्चाई, कथनी और करनी की गरिमा-- कुछ लोगों में.......????                (4.12.2012,काणकोण, गोवा-संकुयादव) 

नव वर्ष की बधाइयाँ

देश विदेश के दोस्तों को समर्पित हम भी जवां हैं, तुम भी जवां हो बच्चे हमारे, हमको हैं प्यारे जब चाहते हैं, वे आओ चलें समुंदर किनारे खेलेंगे, कूदेंगे करेंगे मस्ती हम भी तो देखें नववर्ष की हस्ती लाए यह नव रंग, नव रूप नव मंगल, जीवन में तुम्हारे स्वीकार करो दिल से नव वर्ष की बधाई. एक बार फिर से नये वर्ष की बधाइयां........
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लुटते ग्रामीण

प्रायः यह देखा जाता है कि दुनिया के अन्य देशों में शासन का नेतृत्व समाज और साहित्य की दिशा को आगे ले जाने वाला होता है. परंतु भारत में ऐसा नहीं है. देश का इस प्रकार से अंग्रजीकरण किया गया है कि देश का वह नागरिक जो अंग्रेजी की ताकत से कमजोर है वह कत्तई आगे नहीं बढ़ सकता यहां तक कि वह अपना रोज-मर्रा का कार्य भी सफलता पूर्वक संपन्न करने में असमर्थ होता है. वजह यही मुख्य है भारत में विशेष कर उत्तर भारत में गरीबी और भ्रष्टाचार, गुण्डावाद पनपने की. इसको तबतक नहीं खत्म किया जा सकता जबतक कानून, नियम, प्रक्रिया  आदि का साहित्य, मैनुअल, पारदर्शी और स्पष्ट रूप में आम जनता को उपलब्ध नहीं होता. मैंन देखा है उत्तर प्रदेश की बैंक किसानो को तबतक ऋण नहीं उपलब्ध नहीं करती जबतक की उनके फिल्ड आफिसर को मनमाना शेयर नहीं मिल जाता. बेचारा हक़दार दो तरह से लुटता है. पहला सीधे वह अधिकारी से बात नहीं कर पाता , यदि कोई कोशिश भी करता है तो अधिकारी उसे हड़का देता है और वह कानून, नियम न जानने के कारण ऑफिसर को मनाने के लिए मजबूर हो जाता है. अब इस काम के लिए उसे लोकल नेता की सहारा लेना पड़ता है जै दलाली करता है. उस

अभागों की इच्छा

हिंदी नाटिका: अभागों की इच्छा “ नवीन फलदेशाई और रोशन वेलिप दोनों एक ही गांव के हैं. पालोलिअम बीच के आस-पास, काणकोण, तालूका में इनका घर पड़ता है. दोनों बच्चे कत्यायनी बानेश्वर विद्यालय में एक साथ पड़ते हैं” (स्कूल की कक्षा-पाँच खाली है, उसमें नवीन और रोशन आपस में चिट्चाट कर रहे हैं) नवीन: अरे रोशन! देख मेरी नई किताबें कितनी अच्छी हैं, पापा कहते हैं कि “ इन किताबों के पढ़ने से     बच्चे सबसे तेज और बुद्धिमान बनते हैं. क्या तुम्हारे पास बुद्धिमान बनने की ऐसी किताबें हैं?” रोशन:   नहीं, मुझे ऐसी किताबों की कोई जरूरत नहीं है. मैं बुद्धिमान हूँ, ऐसी किताबे न मेरे पास हैं न  मुझे समझ में आती हैं. नवीन: ह्वाई यू डोंट वांट सच गुड बुक्स जो तुम्हें इंटेलिजेंट बनाती है. रोशन: मुझे समझ में आती नहीं ये किताबें. घर में भी कोई भी इसको  नहीं समझता. नवीन: ओ >> यार! क्यों नहीं समझता है? ये पुस्तकें बहुत सरल और सस्ती हैं. मुझे तो सब समझ में आती हैं. तुमको और तुम्हारे आई, काका को, क्यों समझ में नहीं आती. क्या वे  तुम्हारी तरह गधे हैं. रोशन:   देखो भाई माना की तुम बहुत तेज हो,