संदेश

अपने देश में विरोधी संघर्ष

अपने ही देश में सफलता के लिए करने पड़ते हैं विरोधी संघर्ष उन लोगों से  जो अपने देश के लिए  भलाई के काम करने के पदों पर बैठे हैं, पैदा होने के बाद, जब बच्चा बालवाड़ी जाना शुरू करता है सभी से शुरू हो जाता है संघर्ष पढ़ना, लिखना, सीखना आभाव में शिक्षक और किताब-कापियों के, विकट परिस्थितियों से अंजान खुश और मस्त  जीवन की ललक लिए वह पढ़ता हुआ क्रमशः आगे की कक्षाओं में बढ़ता जाता है। शुरू होता है असली संघर्ष तब जब वह पहुंचता है  अठवीं, नौवीं और दशवीं की कक्षाओं में, विद्यालय में अध्यापक नहीं, ठीक से कक्षाएं नहीं, आवश्यक उपकरणों का अभाव जो कुछ शिक्षण सामग्री होती है वह रहती हैं बंद एक ताले की निगरानी में कमरे के अंतर जैसे बालक अभावों में छटपटाता है, अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए विद्यालय में, मिलती है जहां उसे विरोधी परिस्थितियां जो वह संस्कार में अपने घरों से पाया रहता है उसके विपरीत की दुनिया। 

मुझे कुछ महत्त्वपूर्ण लेख निकालने पड़े।

कहते हैं शोध का तात्पर्य नई खोज और नए तरीकों को अपनाना है किंतु नियमों को पूर्ण करने के लिए शोध के सिद्धांत से समझौता करना पड़ता है। आगे नहीं बोल सकता क्यों कि समझाना मुश्किल है.............................................................................................................. बड़े बड़े लोगों को।

मित्र पर कविता

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      मित्र जिन्हें हम मित्र समझे हैं,                               बहुत खामोश रहते हैं, मालूम नहीं वे! खुश या नाराज़ होते हैं, हम तो अपनों को शुभ प्रभात कहते हैं।

भक्ति आंदोलन और प्रमुख कवि

भक्ति आंदोलन और प्रमुख कवि भक्ति आंदोलन का आरंभ 14वीं सदी के मध्य से 16वीं सदी के मध्य तक माना जाता है। प्रायः विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन की सीमा रेखा से सहमत है जिसे उन्होंने सन ‘1318 ई से 1643’ 1 ई. तक माना है। इस समय सीमा को इतिहास में पूर्व मध्यकाल के रूप में जाना जाता है। हिंदी साहित्य में इस काल को भक्तिकाल अथवा भक्तियुग के नाम से जानते हैं। इस भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स् वर्ण युग भी कहा जाता है क्योंकि इस काल में हिंदी साहित्य के काव्य की श्रेष्ठ रचनाएं की गईं और श्रेष्ठ कवियों का अवतरण हुआ। आंदोलन हो या काव्य प्रवृतियां सबके उद्भव के कुछ प्रेरणा-श्रोत होते हैं। माना जाता है कि भक्ति आंदोलन का उद्भव दक्षिण में आलवारों तथा नायनार संतो द्वारा छठीं से नौवीं शती के बीच हुआ। आलवार संत विष्णु के भक्त थे तथा नायनार संत शिव की आराधना कर ते थे। ये संत अधिकांशतः गैर ब्राह्मण जाति यों में पैदा हुए थे और पौराणिक शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव ज्ञान को ज् याद ा महत्त्व देते थे। चूंकि गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद देश

कहते हैं डर के आगे जीत है

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माता वैष्णव देवी के दर्शन करने के मार्ग पर लगभग पांच सौ मीटर से अधिक ऊंचाई पर बने इस घर के आस पास कैसे बकरी निडर हो कर घूम रही थी। जहां से नीचे देखने पर सामान्य आदमियों के पैर फिसल रहे थे। क्या उन लोगों से ज्यादा बहादूर नहीं है जो इसे मारते हैं या निरीह आदमियों की हत्या करते हैं। क्या भगवान , गॉड और अल्ला ने इस बकरी और उस आदमी दोनों को नहीं बनाया है। किंतु जब बकरी आदमी को नहीं मारती तो फिर आदमी क्यों बकरी को मारता है? सोचें अगर आप की कोई बकरी हत्या करती और कहती सर्वोच्च शक्ति की इच्छानुसार हो रहा है तो आप को कैसा लगता। अतः इस सुंदर ग्रह की सुंदरता की रक्षा करें और बर्बरता से सभ्यता की ओर बढ़े। यही इस बहदूर बकरी का संदेश है।
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श्रीनगर की यात्रा के दौरान काश्मीर की डल झील में शिकारा का आनंद लेते हुए मेरे परिवार के आधे सदस्य- काश्मीर भारत का अभिन्न अंग , इसका सौंदर्य भारत का सौंदर्य है, यहां जो असामान्य बात लगी वह यह की यहां स्थानीय औरते घरों में प्रायः बंद रहती हैं। काश! वे भी इसका अंग होतीं?

जनमार्ग के रोड़े

 हमेशा देखता आ रहा हूँ कि काम कोई कर रहा है और चालबाज उसका हिस्सा खाए जा रहे हैं और काम करने वाले पता भी चल रहा है कि उसका सबसे बड़ा अहित साधक, उससे इर्ष्या करने वाला, झूठा हमसफर बन उसके साथ चलता जा रहा है--- अब उसका असली चेहरा मेरे सामने है और उसे आप भी देखें----- जनमार्ग के रोड़े हमारे देश में, कुछ ऐसे तत्व हैं, जो खाते तो इस देश के हैं, पर गाते परदेश के हैं, बनना चाहते हैं, नेता यहां के काली, भूरी जनता के, पर सदा साथ देते हैं- शोषकों और शोषण अस्त्रों को, कभी-कभी शर्म करते हैं, जनता की बोली बोलने में, उनके संग ऊंचे मंचों पर बैठने में, बताते हैं, लोगों को अपने से छोटा। गलत और स्वार्थी रास्तों से रोकते हैं, लोगों का विकास मार्ग घोषित करते हैं खुद से, खुद को, वे हैं, विकसित सरताज, चाहते हैं, बना रहे अंधविश्वास, बना रहे अविज्ञान का वास, ताकि सुरक्षित रहे, उनके सर का ताज। इन्हीं खोटो ने बुलाया देश के, दुश्मनों को हर बार, करने के लिए सुरक्षित खुद का ताज। भेद-भाव बढ़ाते, खुद को विशिष्ट कहाते, बढ़ाते पीड़ा और संताप, खाते गरीब जनता के रक्त पसीने का परताप हि