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मिट्टी की अस्मिता

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नया सबेरा: कांटिनेंटल होटल काणकोण, गोवा              आज कल किसी का मेल तक आता नहीं लगता है मित्रों का अकाल सा पड़ गया है. हम याद करें तो लोग प्रत्युत्तर देते हैं वरना लगता है अपनों में ही खोए है क्या करें मंहगाई और अव्यवस्था हमें लूट लिया चापलूसों और चापलूसी की ही बाजार गरम है देश भक्ति और सच्चे सेवकों का काम नरम है जोड़ कर ले चलना हो गया पहाड़ तोड़ना नोचना देश और समाज को है बड़ा आसान शायद पिछली सदियों में भी पूरखों ने तोड़कर लूटते रहने का दिखाया है रास्ता इसलिए आज भी कुछ लोग सफलता से अपनाएं है उनका रास्ता क्या कहें बूरा या अच्छा  पर मन को कुछ नही भाता किंतु अब बन रही है एक आशा हिंदी पूरे भारत की बन चुकी है राष्ट्रभाषा संचार क्रांति ने फिर जगा दिया है आशा जूड़ा रहेगा देश और जोड़ती रहेगी भाषा आओ खुद ऊंचे उठें करे इसका प्रयोग जहाँ इसके ही बेटे डरते हैं छोटे होने के पाप से क्योंकि तकनीक और बाजार में हो रही है रानी इसके बच्चे गरीब और अशिक्षित है  अतः नहीं चढ़ा पा रहें है पानी परंतु सचमुच यह विश्व बाज़ार की बन रही है रानी. इसलिए ज्या