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कवि केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा के अंतर्गत प्रस्तुत रचना : लोक और आलोक

  दोस्तों, इस सप्ताह व्यस्ततावश कवि की रचनाओं को प्रस्तुत करने में देरी अवश्य हुई किंतु यह जानना जरूरी है कि केदारनाथ अग्रवाल ने अपनी प्रारंभिक तीन रचनाओं 'युग की गंगा', 'नींद के बादल' और यह 'लोक और आलोक' संसार को दिया जिसमें उनकी रचना 'लोक और आलोक' मानव जीवन के संघर्षों को यथार्थ की ले जाती हुई दिखाई देती है तथा कवि की प्रगतिशीलता स्पष्ट होने लगती है। लोक और आलोक      प्रस्तुत काव्य संग्रह का प्रकाश न , लहर प्रकाशन , इलाहाबाद द्वार मई , 1957 ई. में हुआ था। प्रकाशन की दृष्टि से यह उनका तीसरा काव्य संग्रह है। इस संकलन में कुल 54 कविता एं संकलित थीं। किंतु काव्य संग्रह के अनुपलब्ध होने के कारण उसकी सभी संकलित रचनाएं क्रमशः ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ में 17 और ‘गुलमेंहदी’ में 37 की संख्या में साहित्य भंडार , इलाहाबाद द्वार संकलित कर प्रकाशित की गई हैं। इस संकलन की रचनाएं जन ता के लिए हैं और जनता के दुख दर्द से गहरा सरोकार रखती हैं। ये कविता एं जन वादी दृष्टि को ण के प्रकाश में लोक जी वन के अनछुए पक्षों को प्रमुखता से उभारती