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मैं मोबाइल हूँ

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मैं मोबाइल हूँ मैं बड़े काम की चीज हूँ, तुम सब की अजीज हूँ। छ: अक्षर के मेरे नाम, पूरा करते तेरे काम । बूढ़े बच्चे हों जवान, किस्मत कनेक्शन हुआ असान। संकट से मैं तुम्हें बचाऊँ, चोरी में भी साथ निभाऊँ। फिर भी रखती तुम्हारा ध्यान, टिकट निमंत्रण और पहचान। बच्चों की मैं ज़ानम-ज़ान, गेम खेल करते परेशान। अनेक रूप आज हमारे, जिससे बढ़ते सम्मान तुम्हारे। मैं हूँ सब जन की वायस, मेरा नाम है मोबायल॥

बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद आज मैं पुन: अपने ब्लोग पर टिप्पणी कर रहा हूँ। विशेष कर हिन्दी भाषा और उसकी क्रियाशीलता के विषय में लोग कहते हैं कि हिन्दी में काम करना बहुत कठिन है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। कठिनाई का कारण है जानकारी का अभाव विशेष कर जो लोग आटी. जगत से जूडे हैं वे ही हिन्दी का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। मैनें अधिकांश आई.टी. के विद्यार्थियों से जब पूछा क्या वे हिन्दी लिखने में मेरी सहायता कर सकते हैं तो अधिकांश को हिन्दी लिखने की जानकारी ही नहीं है। सरकार से हमारा अनुरोध है कि आई. टी विद्यार्थियों को हिन्दी की जानकारी अनिवार्य करनी चाहिए और परीक्षा बोर्डों को इस पर प्रश्न भी अनिवार्य रूप में पूछना चाहिए। इस प्रकार लोगों को कम्प्युटर द्वारा मातृभाषा में कार्य करने में आसानी होगी तथा इसका प्रचार और स्वीकारीयता भी अपने आप बढ़ जाएगी।

हिन्दी दोस्तों आप आओ साथ

हिन्दी दिवस क्या मनाना? जिस घर में खेत और खलीहान में हिन्दी की होती है खेती प्रतिक्षण प्रतिदिन हिंदी दिवस ही तो मनाते हैं, वे बोले या न बोलें कितनी भी पाश्चात सभ्यता को ढ़ो लें लेखिन फिर भी वे रहेंगे कौए का कौआ ' कितना भी क्रो - क्रो कर लें, फिर भी काँव काँव करने से अपने बच्चों को नहीं रोक सकते इस लिए हे यारों खुश हो कर हिन्दी में बोलों हिन्दी दिवस क्या मनाना ।

चम्पा

चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती :- आख़िर चम्पा काले काले अक्षर क्यों नहीं चीन्हती तो फिर कम्प्यूटर पर कैसे काम करेगी, क्या कभी किसी ने इन समस्याओं की ओर ध्यान दिया है? शायद नहीं यदि इस मर्ज की दवा मिल जाय तो सारी बीमारी समाप्त हो जाएगी। तो चलो इसका आज समाधान खोजें।

हिन्दी टाइप करने का सबसे अच्छा औजार कौन सा है---

भाई मै बहुत वर्षो से हिन्दी के ऑफ़ लाइन और आन लाइन पर काम कर रहा हूं परन्तु अभी तक कोइ ऐसा टाईपिंग औजार नहीं मिला जिसका सफलता पूर्वक हर जगह प्रयोग किया जा सके पहले मै शुषा बाद में कृतिदेव पर आफ लाइन में लिखता था बाद में s arvgyजी की कृपा से आई एम ई फोनेटिक की जानकारी हुई तब यह बहुत अच्छा लगा की हिन्दी की समस्या टाईपिंग की समाप्त हो गयी परन्तु जैसे जैसे कार्यों की विविधता बढ़ती जा रही है वैसे यह आई एम ई फोनेटिक अनेक जगह पर नहीं चलता है जैसे विंडो के एक्सअल पर तुंरत अक्सार नहीं दिखाई देता है और ठीक से डाटा इन्टर करना एक समस्या है आज से इनस्क्रिप्ट पर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ यदि यह वैज्ञानिका हो और आजीवन के लिए उपयोगी बन जाय तो कितना अच्छा होगा रवि भाई का बहुत बहुत धन्यवाद जिनके कारण हम जैसे गैर-तकनीकी क्षेत्र के लोग भी आन लाइन और आफ लाइन पर कार्य करने की कोशिश कर रहे है। कृपया बताइए क्या कभी कोइ वैज्ञानिका और स्पेल चेकर के साथ कोइ टूल मिलेगा यदि बना हो तो सुझाव दे । क्योंकि हमारे पास केवल विंडो की ही सुविधा है। लिनक्ष्स अच्छा है, ओपन आफिस अच्छा है अनेक लोग बताते है परन्तु यहाँ

चिट्ठाजगत पर तुरन्त छापो बटन

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http://www.chitthajagat.in/?ping=http://janjankeeaavaz.blogspot.com/

कहानी आप की

मन कहता है मै भी कहानी लिखूं, मगर क्यों बार-बार मन पीछे हो जाता है, शायद देख कर कल की संसदीय कार्यवाही, दिल छोटा हो जाता है। अपनों ने किया अपनों पर आघात न जानें क्यों, शायद रूपया अब भावनावों और नियमों से बलवान हो गया है, पूरा शहर और गांव देख रहा था, निर्लज्जता बलवान हो रही, टूट जा रहा है विश्वास , क्योंकि पैसा भगवान होता जा रहा है।

चिट्ठा जगत

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खामोशी को तोड़ना पड़ेगा ।

हम बहुत दिन से खामोश थे कि वे जो कर रहे हैं वह अच्छा ही होगा। परंतु वे इतने कमीने निकले की हमारे अहसास उड़ गए। कहते हैं हम ही सच्चे देश भक्त हैं और सबसे अच्चे हैं। पर करते हैं केवल स्वार्थ पर राजनीति, हमें कहते है दोशी। खुद केवल देखते हैं निज फायदा क्या है आप की तमन्ना। अब हम भी गए हैं जान नहीं बना सकते हमें मूर्ख। क्योंकि आप ने हमें बना दिया है चालाक। हम जानते थे सच्चे अर्थों में प्यार करना। मदद करना जान दे कर अपने देश और समाज के हित का। परंतु आप ने सीखा दिया, चोरी, चापलूशी और भोले-भालो को धोखा देना। अब हम अच्चे आप के सच्चे शिष्य आप को देंगे हर जगह मात । क्योंकि आप ने दिखाया है रस्ता स्वार्थ है सर्वोपरि। बाकि हैं सब निर्थक, आप कोई और नहीं: आप हैं शिक्षित, गुरूजन और अग्रजन।
दोस्ती दिवाली के दिप जले शान से यारों की यारी रंग लाये प्यार से दीप के बिन है दिवाली अधूरी दोस्त के बिन है जिंदिगी अधुरी भवरे को फूल की महक है प्यरी दोस्ती तो दोस्ती है सबसे न्यारी दुनिय को भले दौलत है सबकुछ दोस्ती को लगे दोस्ती है सबकुछ

राज दादा भाई साहब जरा सोचें

भारत मानुष विचार करें महाराष्ट्र में जो अलगाववादी बीज बो दिया गया है वह अब पल्लवित हो रहा है। धीरे धीरे यह बीज बंगलौर, कोलकाता एवं अन्य महानगरों में भी फैल सकता है। यह निश्चित रूप से भाषा और क्षेत्रीयता को आधार बनाकर किए गए राज्यों के निर्माण का दुष्फल है। दुनिया के हर देश ने कम से कम भाषाई आधार पर एकता हासिल किया है या उस दिशा में तेजी के साथ बढ़ रहें हैं। चीन हमारे सामने एक उदाहरण है जिसने हाजोरों देशी भाषाओं को जीवंत बनाए हुए अपनी एक राष्ट्रीय भाषा और राष्ट्रीय जीवन शैली विकसित कर लिया है, अत: चीन जैसे विविधता युक्त देश में सामुदाइक वैमनस्य, संघर्ष तथा अलगाव की समस्या अल्पतम है। जहाँ तक वैश्विक सम्पर्क और विकास का प्रश्न है तो वह भारत जैसे देशों से कहीं भी पीछे नहीं है। क्या कारण है कि आज उत्तर भारतीय या हिन्दी के नाम पर इस देश में राजनीति की जा रही है जबकि मराठी या उत्तर भारतीयों में कोई विशेष अंतर नहीं है। मराठी, गुजराती और हिन्दी में भाषाई और सामाजिक स्तर पर कोई विभेदक अंतर नही है। इससे यह पता चलता है कि हम तिलक और शिवा जी को भूल गए हैं और राजनीतिक स्वार्थों के आगे पूरे देश को बि

भारत की प्रगति चौगुना बढ़ सकती है?

भारत विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर है और प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी छवि सुधारी है। अधिकांश विद्वान इसे बहुत उत्साहजनक और उज्ज्वल भविष्य के रूप में देख रहे हैं। परंतु मुल्यांकन का तटस्थ मापदण्ड अपनाया जाय तो भारत की औसत प्रगति विश्व के अन्य देशों से की तुलना में कमतर है। यदि आप भारत को भिखमंगों और सपेरों की दृष्टि से देखने वाले में से हैं तो आप को लगेगी भारत ने बहुत प्रगति कर लिया है और प्रगति के गतिशील रथ पर सवार है। जबकि सच्चाई इसके विरुद्ध है। विश्व के किसी भी मानव विकास रिपोर्ट का अवलोकन करें तो पता चलता है भारत के साथ स्वतंत्र होने वाले देश इससे कई क्षेत्रों में बहुत आगे है। आखिर क्यों? आज भारत में सैनिक सेवा के लिए उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिल रहें हैं क्यों? निम्नस्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है तो क्यों? देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है तो क्यों? पाश्चात्य शिक्षित (कथित आधुनिक शिक्षा/शिक्षित) उम्मीदवारों का अभाव क्यों? यदि उपर्युक्त प्रश्नों का समाधान खोजें तो हमें क्षैतिज और उर्ध्वाधर गहराई में उतर कर विश्लेषण करना होगा कि स्वतंत्रता के