संदेश

जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना : नींद के बादल

  दोस्तों, प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना के अंतर्गत आज उनकी दूसरी रचना नींद के बादल के बारे में जानकीरी प्रस्तुत की जा रही है......                                                      2. नींद के बाद ल          प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का प्रकाशन की दृष्टि से दूसरा काव्य संग्रह है , जिस में कुल 42 कविता एँ संकलित हैं। इसी काव्य संग्रह की अन्तिम कविता ‘नींद के बाद ल’ के नाम पर इसका नाम कर ण किया गया है। परंतु ‘नींद के बादल’ काव्य संग्रह के अनुपलब्ध होने के कारण इस संग्रह की सभी कविताएँ कवि के अन्य काव्य संग्रह ‘गुलमेंदी’ में संगृहीत हैं। इस काव्य संग्रह में कवि के जीवन की प्रारंभिक दौर की कविताएँ संकलित हैं , जब वे अपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने की कोश िश कर रहे थे। कवि स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए लिखता है कि “मेरे काव्य संकलन ‘नींद के बादल’ में मेरी काव्य- चेतना की प्रारंभिक रचनाएं है। वे रचनाएं मेरे तब के मा नव ीय बोध को व्यक्त करती हैं।” 23 कवि ने इस काव्य में प्रेम-प्रणय और प्रकृति के अनेक चित्र खींचे है

गरीबों और किसानों के आंसुओं का मजाक बनाती : मुनाफाखोर दलाल भारतीय मीडिया

नए कृषि कानूनों को हटवाने के लिए बैठे किसानों का दर्द असहनीय हो गया है, कल्पना करें कितनी ठंड है तापमान 6 °  डिग्री सेल्सियस है। जरा सोचें:  दोस्तों लिखने की इच्छा नहीं हो रही है किंतु मन शांत भी नहीं हो रहा है। पिछले तीन महीनों से किसान भाई अपनी वाजिब मांग लेकर शासन से हर स्तर पर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किंतु सरकार उसे सुन नहीं रही है। किसानों ने अपनी मांग को संवैधानिक तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन और प्रदर्शन के माध्यम से सरकार के पास पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। प्राय: लोकतंत्र में जनता की इच्छा पर बनी सरकारों के सामने जनता की इच्छा को प्रकट करने का यही सही तरीका है। जब किसी मांग या आंदोलन में बड़ी संख्या में जनभागीदारी होती है तो इसका मतलब होता है। उस विषय से बहुत से लोग प्रभावित होने वाले हैं और उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से मांग करते हुए उसमें सुधार और प्रभावित लोगों के हितों की रक्षा करना, सरकार से अपेक्षित होता है। किंतु सरकार उनकी मांगे मान नहीं रही है और उन्हें कह रही है कि हम किसानों का फायदा करा रहे हैं। सीधा सा नियम है, देश के अन्य भागों में जहां मंडी नह

प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना : युग की गंगा

 दोस्तों केदारनाथ अग्रवाल के रचनासंसार के अंतर्गत आगे उनकी रचनाओं पर जानकारी प्रस्तुत की जा रही है- उनकी पहली काव्य रचना 'युग की गंगा' प्रस्तुत है- काव्य संग्रह 1. युग की गंगा   प्रस्तुत काव्य संग्रह कवि केदारनाथ अग्रवाल का पहला प्रकाशित काव्य संग्रह है। इसका प्रकाशन मार्च , 1947 ई. में हिंदी ज्ञान मंदिर लि. मुंबई द्वारा किया गया था। इसमें कुल 52 कविता एँ संकलित हैं। इस काव्य संग्रह की एक कविता ‘युग की गंगा’ के आधार पर इस काव्य संग्रह का नामकरण किया गया है। इस काव्य संग्रह की कविताओं से पता चलता है कि कवि की दृष्टि यथार्थवादी है परंतु वह साम्यवादी विचारों से प्रभावित है। कुछ कविताएं ‘चन्द्रगहना से लौटती बेर’ , ‘ बसंती हवा’ , ‘ सावन का दृश्य , ‘ चांद-चांदनी’ और ‘बसंत’ आदि कविताएं रोमानी रंग के प्राकृतिक चित्रण हैं। किंतु अधिकांश कविताओं में प्रकृति सामाजिक , धार्मिक और आर्थिक विषमताओं को प्रकट करने हेतु उपकरण के रूप में प्रकट हुई है। मा नव जीवन की विद्रूपताओं और पीड़ाओं से भरी जिन्दगी की छाया बड़ी विषाक्त , चोटीली और व्यंग्यात्मक रूप से

केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा का तृतीय सोपान : सेवावकाश से मृत्यु पर्यन्त (1971 से 2000)

  दोस्तों प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा पर आधारित अंतिम सोपान आप के समक्ष प्रस्तुत है- तृतीय सोपान : से वावकाश से मृत्यु पर्यन्त (1971 से 2000)   प्रगतिशील काव्य धारा में चोटी पर स्थान बना चुके कवि केदारनाथ अग्रवाल 4 जुलाई , 1970 ई. को सरकारी वकील के पद से सेवा-निवृत्त हुए। तत्पश्चात वे व काल त की तरफ देखे भी नहीं , पूरी तरह कविता और साहित्य की साधना में समर्पित हो गए। सन् 1973 ई. में केदार जी ने एक बड़े जमावड़े के साथ बांदा में ‘अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक’ सम्मेलन का आयोजन किया। यद्यपि केदार इसके पहले अनेक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक कार्य क्रम सफलता पूर्वक करवा चुके थे। लेकिन 1973 के ‘प्रलेस’ सम्मेलन से केदार जी को विश्व-विश्रुत मिली। इस सम्मेलन में महा देव ी वर्मा , निराला , पंत , नागार्जुन , नीरज , भवानी प्रसाद मिश्र आदि नामी-गिरामी हस्तियों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन की दिल्ली से लेकर बांदा तक खूब चर्चा हुई। इस प्रगतिशील साहित्यिक सम्मेलन के आयोजन में बेबस विधान सभा के तत्कालीन सीपीआई विधायक देव कुमार यादव ने

केदारनाथ अग्रवाल : वकालत की डिग्री से सेवानिवृत्ति तक (1938 से 1971)

 दोस्तों केदारनाथ अग्रवाल के व्यक्तित्व का दूसरा चरण प्रस्तुत है- द्वितीय सोपान : व काल त की डिग्री से सेवानिवृत्ति तक (1938 से 197 1 )        केदारनाथ अग्रवाल इलाहाबाद में स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात कानून की पढ़ाई करनी चाही , इसके लिए वे कानपुर आए और यहीं पर वे जीवन की वास्तविकता से परिचित हुए। 1935 ई. में वे डी.ए.वी. कालेज कानपुर में विधि स्नातक शिक्षा हेतु प्रवेश लिया और 1938 ई. में इसे पास किया। उनके जीवन को दिशा और स्व रूप कान पुर में विधि स्नातक की पढ़ायी कर ते समय प्राप्त हुई। केदार जी कहते हैं- ‘कानपुर में हमें जीवन देखने को मिला’। वास्तव में कानपुर में केदार जी का संपर्क कवि बालकृष्ण बल्दुआ से हुआ। बल्दुआ के इर्दगिर्द प्रगतिशील विचार ों और साहित्यिक संस्कारों का माहौल था। यहीं पर उनका परिचय मजदूरों के जीवन से , उनकी समस्याओं से , उनकी पीड़ित , दमित जिंदगी से होता है। यहीं पर मार्क्स की विचार धारा का केदार गहराई से अध्ययन करते है। केदार बल्दुआ की एक अच्छे आदमी के रूप में प्रशंसा करते हैं , उनसे किताबें और अन्य मार्क्सीय विचार धारा से संबंधि