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आज बहुत दिनों के बाद

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आज बहुत दिनों के बाद रविवार को बैठा हँ अपने क्वार्टर के बाहर, दुनिया से अकेला एक ऐसे बिहड़ जगह पर जहां कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं आता, दूर दराज तक जंगल ही जंगल है, संपर्क का लैंडलाइन का सहारा है, बस बीएसएनल भाई का सहारा है, न जीवो न एअरटेल, न कोई और नेटवर्क सारे सिम बेकार पड़े बंद हो गए। कोई कूरियर सर्विस नहीं, बस पोस्ट ऑफिस का सहारा है, इस मनोरम जंगल में शहर से दूर सरकारी सेवा का आनंद ही अनोखा है, बस रिटायरमेंट के बाद, पेंशन का न होना ही बहुत बड़ा धोखा है। देख कर लोगों का भविष्य और अपना मन में डर सा लगता है, निजीकरण की यह फायदेमंद भूख क्या जनता के साथ धोखा है। आसियाना

नरसिंह यादव VS सुशील कुमार : सुशील कुमार हत्या के मामले में गिरफ्तार

#नरसिंह यादव vs #सुशील कुमार एक ही वेट वर्ग में रियो ओलंपिक जाने के लिए नरसिंह यादव बनाम सुशील कुमार वाला मामला था,, नरसिंह क्वालिफ़ाई कर चुका था... अगर वह अपना नाम वापस लेता तो ही सुशील कुमार ओलंपिक जा पाता... सुशील कुमार की तरफ ताकत थी, उसके ससुर महाबली सतपाल थे, नॉर्थ की मजबूत रेसलिंग लॉबी का पोस्टर ब्वॉय था सुशील कुमार. महाराष्ट्र के नये लड़के नरसिंह यादव ने दुस्साहस कर लिया इन सबको चुनौती देकर, वह पैसै के लालच और धमकी किसी भी चीज के आगे नहीं झुका.... फिर हरियाणा के ट्रेनिंग कैंप में प्रेक्टिस के दौरान रहस्यमयी तरीके से कुछ ही दिनों बाद वह डोप में फंस गया,, उसने रो रोकर कहा कि मुझे फसाया गया है, परिवार रोया मीडिया के सामने.. IOA ने 4 साल का बैन लगाया.. प्रधानमंत्री मोदी से जांच की मांग की.. कि बैन हटवा दो सर, जांच करवा दो,,, लेकिन मोदी सरकार ने भी रफ़ा दफा का खेल खेला। जैसे बंगाल में खेला हो गया, बिहार में भी खेला हुआ। बंगाल में सत्तारूढ़ लोग भाजपा से धन-दौलत ऐंठने के बाद भी मन से ममता के साथ थे. बिहार में तेजस्वी की अभिमन्वीयता की हार्दिक प्रशंसा के बावजूद भी वह सत्तारूढ़ शक्ति वि

मोहिनी

"मोहिनी” वह बहुत सुंदर थी। आईसीआईसीआई बैंक के काउंटर पर पैसा जमा करती थी। पहले दिन उसने पैसा जमा करने में मेरी मदद की, मैं पहली बार आईसीआईसीआई बैंक में पैसा जमा करने गया था। मैं वहां पर कैश जमा करने की पर्ची खोज रहा था। उसने कहा पेपरलेस जमा होता है। मैंने उसको अपनी मोबाइल दे दी, बैंक एप को ऑन कर दिया और उसने एमाउंट पूछा और अपनी कोमल अंगुलियों से मोबाइल पकड़े हुए मेरे हाथों को स्पर्श करते हुए पेपरलेस की पर्ची भर दी। मैंने उसे 50000 का कैश दिया और तुरंत एक मिनट के अंदर वह हमारे अकाउंट में दिखने लगा। अमाउंट जमा हो जाने के पश्चात ही मुझे उसके हाथों के कोमल स्पर्श की अनुभूति हुई। उसके पहले मेरे अंदर एक भय था कि कहीं वह अकाउंट से कोई छेड़छाड़ न कर दे। उसकी कोमल अनुभूतियां मेरे जेहन में कहीं न कहीं अपनी छाप छोड़ दी, किंतु मैं उसे अनुभूत नहीं कर पा रहा था।  किंतु आज दूसरा हफ्ता था और मैं फिर लगभग 40,000 का अमाउंट जमा करने के लिए वहीं गया। किंतु आज काउंटर पर वह मुस्कुराता हुआ गोरा प्यारा चेहरा नहीं था। मुझे आज उस तरह से मुस्कुराते हुए स्वागत और सहायता करने वाली अनुभूति महसूस नहीं हुई। मैंन

वे और हम

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  वे और हम वे हमें चाहते हैं हम उन्हें चाहते हैं हम दोनों एक दूसरे के प्रति नरम हैं हम दोनों की अभिलाषाएं है मिलें और ठंडी कर लें सारी जरूरतें शरीर की हमें पता है हम एक दूसरे को खुब आनंद देंगे पर समस्या है कि वे और हम शादीशुदा हैं और अपने साथी को बहुत प्यार करते हैं इसलिए डरते हैं कि वे हमारे प्यारे नहीं समझेंगे और हमारी जिंदगी उलझ जाएगी काश समझते शरीर की जरूरत होती है प्यार अलग और प्यास अलग होती है। रचित : संतोष गोवन / 20/04/21

विद्वान अँधेरा, ढपोरशंखी सूर्य, दोनों हमारे हैं, और हम, उनके सहारे हैं, इसलिए, थके हुए, हारे हैं...

  प्यारे पाठक मित्रों, आज महान प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा एवं रचना संसार के अंतर्गत उनकी रचना "आग का आईना" के बारे में जानकारी दी जा रही है............ आग का आईना    प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का ऐसा काव्य संग्रह है जिस में कवि के व्यक्तित्व के वि कास को देखा जा सकता है। काव्य संग्रह का प्रकाशन जुलाई , 1970 ई. में हुआ। इसमें संकलित 106 कविता एं , सितंबर , 1960 से मार्च , 1970 तक के बीच लिखी गई थीं। इस पुस्तक के बारे में केदारनाथ अग्रवाल कहते हैं कि “इसकी कविताएं पहले की मेरी कविताओं से बिल्कुल भिन्न हैं। दोनों के बीच की दूरी मेरे पहले और अब के केदार के बीच की दूरी है। यह दूरी मेरे दोनों अस्तित्वों को एक क्रमिक विकास से जोड़े है।” 34       इस संग्रह में केदारनाथ अग्रवाल का वह अनुभव पिरोया गया है , जिसे वे सरकारी वकील बनने के बाद अनुभव किए। केदार जी देश के विद्वानों और नेताओं के विषय में जो अनुभव किया उसे साफ लिख दिया है-                  विद्वान अँधेरा       ढपोरशंखी सूर्य       दोनों हमारे हैं       औ

हड्डी की लोहे से टक्कर : फूल नहीं रंग बोलते हैं

 दोस्तों, केदारनाथ अग्रवाल के रचनासंसार की इस कड़ी में कई कारणों से सतत लेख प्रस्तुत नहीं हो पा रहे हैं, किंतु जैसे ही समय मिलता है, इसको निरंतरता देने की कोशिश जारी रहेगी.............. 'फूल नहीं रंग बोलते हैं' नाम  उनकी रचना के बारे जानकारी प्रस्तुत की जा रही है। यह काव्य संग्रह  उल्लिखित कवि की प्रतिनिध रचनाओं में से एक है। इसमें भारतीय समाज के किसानों, मजदूरों की दशा और संघर्ष को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है।                           फूल नहीं रंग बोलते हैं   प्रस्तुत काव्य संग्रह का प्रकाशन अक्तूबर 1965 ई. में परिमल प्रकाशन , इलाहाबाद द्वारा किया गया था। इस कविता संग्रह की भूमिका ‘मेरी ये कविता एं’ में स्वयं केदार नाथ अग्रवाल लिखते हैं कि “पहले भी मेरे तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। अब उ नम ें से एक भी उपलब्ध नहीं हैं। यह संकलन उस कमी की पूर्ति कर ता है।” 28 जिससे स्पष्ट होता है कि कवि ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ काव्य संग्रह को अपने काव्य जीवन का प्रवेशांक मानता है। इस काव्य संग्रह में उनके पूर्व प्रकाशित तीन अप्राप्य काव्य संग्रहो