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मातृभाषा का वृक्ष

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यह कविता मातृ भाषा का महत्व व्यक्त करती है। मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में कभी टकराहट नहीं होती है, वास्तव में राष्ट्रभाषा मातृभाषा की मातृक या पैतृक विरासत ही होती है। जो अपने सभी कुलवंशों के बीच अपनत्व और संपर्क का कार्य करती है। अतः राष्ट्रभाषा से मातृभाषा को कोई खतरा नहीं होता, बल्कि मातृभाषा उससे समृद्ध ही होती है। ठीक उसी प्रकार मातृभाषों से राष्ट्रभाषा सदैव रस लेकर स्वयं को समृद्ध करते हुए अग्रगामी होती है। जहां मातृभाषाएं खत्म हो रही हैं, वहां राष्ट्रभाषा नहीं बच सकती है। यहां कोई दूसरी संपर्क भाषा बन जाए।  अतः उत्तम स्थिति उसी देश की होती है, जिसकी राष्ट्रभाषा ही संपर्क भाषा हो और मातृ भाषाओं से राष्ट्रभाषा सिंचित होती रहे, जैसे वर्तमान में भारतीय परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्थिति है। आइए मातृभाषा पर एक कविता पढ़ते हैं-

हिंदी पाठ्यक्रम (Hindi Course)

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दोस्तों आज मैं आप को हिंदी पठन-पाठन से जुड़ी जानकारी देंगे। क्योंकि बहुत लोग उसके बारे में जानना चाहते हैं। भारत में हिंदी के दो पाठ्यक्रम चलते हैं- 1. ऐक्षिक हिंदी पाठ्यक्रम (Elective Hindi Course) 2. आधार हिंदी पाठ्यक्रम (Core Hindi Course) उक्त दोनों पाठ्यक्रम (कोर्स) केंद्रिय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) जिसे अंग्रेजी में Central Board of Secondary Education (CBSE), जो "शिक्षा मंत्रालय" भारत सरकार के अंतर्गत देश की परीक्षाओं और पाठ्यक्रम बनाने को निर्धारित करने तथा संपन्न करने का कार्य करता है। इसकी अधिकारिक साइट है-  https://cbse.nic.in/ ऊपर वर्णित दोनों पाठ्यक्रम पूर्ण रूप से सीबीएससी द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। उक्त दोनों में से कोई भी पाठ्यक्रम पढ़ने वाले विद्यार्थी को हिंदी विषय से पढ़ा विद्यार्थी माना जाता है। वह कहीं पर इस योग्यता को हिंदी की योग्या के लिए प्रस्तुत कर सकता है। आप सबकी जानकारी के लिए यहां बाताना आवश्यक है कि भारत में ऐक्षिक (इलेक्टिव) और आधार (कोर) दो प्रकार के पाठ्यक्रम माध्यमिक से स्नातक शिक्षा तक चलते है। किंतु स्नातक या उच्च शिक्षा में हिंदी

संकल्प

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प्रिय पाठक दोस्तों, इस पर आप के लिए जो कविता है वह समसामयिक घटना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष में देखती हुई, उस दर्द को व्यक्त करती है जो नारी जाति और कमजोर जातियों को कथित हिंदू सनातनी धर्म के खूंखारपन के कारण आज आधुनिक युग में भी झेलने के लिए मजबूर कर रहा है। आशा करता हूं कि उभरते कवि श्री आर एन यादव की यथार्थ वयानी वाली 'संकल्प' कविता सोचने के लिए प्रेरित करेगी............. **** संकल्प ****   कितने ही हैवानों ने मिलकर, मानवता का अंतिम संस्कार किया। हबसी, बेजमीर खूनी भेड़ियों ने, इंसानियत का संहार किया। संविधान के रखवालों ने भी, बढ़ चढ़कर हैवानियत का साथ दिया। सारे सबूत मिटा डाले, दोष परिजन पर ही लाद दिया।   चांदी के जूते की ताकत,  मानवता पर भारी है। लक्ष्मी माता की चकाचौंध से, चहुँओर छायी अंधियारी है। जमीर ,चेतना,विवेक शून्य, इन सब की गई मति मारी है। अन्याय गर न रोक सके, तो अगली तुम्हारी बारी है।  क्या दुनिया का दस्तूर यही, निर्बल ही सताए जाते हैं। शेरों की बलि नहीं दी जाती, बकरे ही चढ़ाए जाते हैं। रामराज्य की दुहाई देने वाले, निज भगिनी,सुता भूल जाते हैं। वासना,आसक्ति के वशीभूत, निर्ब