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हिंदी पखवाड़ा प्रतियोगिताओं के लिए प्रमाण-पत्र

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                                                                         दोस्तों, हिंदी भाषा की पखवाड़ा के अंतर्गत आयोजित की जाने वाली प्रतियोगिताओं के लिए आप इस प्रकार प्रमाण-पत्र बना कर विद्यार्थियों को दे सकते हैं। हमने अपने विद्यार्थियों के लिए बनाया है, जिसे विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक करने का प्रयत्न किया गया है।

अहीर शब्द की उत्पत्ति और उसका अर्थ

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अहीर या आहिर शब्द का अर्थ होता है, वीर, बहादुर, निडर, भयहीन। यह शब्द संस्कृत के आभीर शब्द से बना है। यह शब्द आभीर जनजातियों  के लिए प्रयोग किया जाता है। ये जाति बहुत बहादूर और निडर स्वभाव की होती है। इनमें गोत्र और खाप परंपरा के अनुसार पंचायतें चलती है। इन्हें अपनी रक्त शुद्धि पर बहुत गर्व रहता है। भगवान श्री कृष्ण इसी जाति में पैदा हुए थे। वास्तव में समाज में यह मुहावरा प्रचलित है कि अहीर होना अर्थात निडर होना, साहसी होना। भारतीय समाज में स्त्रियों का सपना होता है कि उन्हें अहीर गुण वाला पति मिले। क्योंकि आभीर उच्चकोटि के प्रेमी होते हैं। बचन के पक्के होते है, साहस, वीरता के साथ-साथ इनमें दया, धीरता और रक्षा के भाव भरे होते हैं, शायद इसलिए नारी जाति इन पर बहुत भरोसा करती है और मन ही मन अहीर जैसे वर की कल्पना करती रहती हैं। आभीर जनजाति दुनिया की बहादुर और भयानक आक्रांता के रूप में प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। यह जनजाति अपने प्रारंभिक काल से घुमंतू प्रकृति की थी, क्योंकि इसके जीवन यापन का आधार पशुपालन था। गाय, भैंस , बकरी आदि का पालन करने के लिए घास के मैदान और मीठे पानी की आवश्य

लगता है ऐसा

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क्यों अब लगने लगा, पाकिस्तान की बराबरी करने लगे हम। पाकिस्तानियों-सा जीवन, जीने लगे हम। शासन हो गया है वैसा, प्रशासन हो रहा है वैसा। न्यायपालिका और मीडिया भी वैसी हो गई हमारी। लगता है पाकिस्तान से आगे निकल जाएंगे हम। अरबीस्तान या सीरिया बन जाएंगे हम। हम जीत रहे या हार रहे जानते नहीं हम।                     *****

ब्राह्मण और अब्राह्मण जातियों की सोच की टक्कर

ब्रह्मानंद ने कृष्णानंद को किया नहीं प्रणाम। कृष्णानंद ने पूछा पंडित जी क्यों हो नाराज। क्यों नहीं करता तुम मुझको प्रणाम उम्र , ज्ञान , उपाधि , धन , दौलत , बल , विद्या और सौंदर्य में हूं तुमसे महान। क्या कारण है यजमान , नहीं करते हो प्रणाम। ब्रह्मानंद बोला तुम कुछ भी हो जाओ , किंतु होते हैं ब्राह्मण ही महान। क्या तुम्हें दीखता नहीं शिखा , तिलक , जनेऊं और भगवा वस्त्र हमारा। जन्मना हम श्रेष्ठ है , यही है ईश्वर का विधान , इसलिए हे कृष्णानंद हमको करो प्रणाम। माना शिखा तुम रखा है , शिखा मैं रख लेता हूं , वस्त्र भगवा जनेऊं धारण कर तिलक विधान कर लेता हूं। सुनो! ब्रह्मानंद , करो प्रणाम विद्याज्ञान तुझे मैं देता हूं। सब कुछ कर लो कृष्णानंद , जन्म कहां से लाओगे। गुरु श्रेष्ठ भले हो जाओ तुम , जायते श्रेष्ठ नहीं हो पाओगे। जन्म तुम्हारा श्रेष्ठ है कैसे यह बतलाओ ब्रह्मानंद ? पितृ मुखा से , मात्रृ गुदा से कहां से तू जन्माया है। श्रेष्ठ हो तुम कैसे मानव से ? यह भ्रमाभिमान ही तुम पाया है। करो प्रणाम , भूलो अभिमान , नहीं तो अधम नर कहलाओगे। नहीं मानता श्रेष्ठ