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केदारनाथ अग्रवाल : जीवन परिचय

         द्वितीय सोपान                                                                                              केदारनाथ अग्रवाल : संक्षिप्त जीवन परिचय प्रगतिशील काव्य धारा के अग्रणी और लोकवादी आलोक से दीप्तिमान कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई. (सं. 1968 वि.) चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन शनिवार को बांदा जिला , उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके गाँव का नाम कमासीन था , जो बांदा जिला मुख्यालय से 75 कि.मी. दूर बाबेरू तहसील में पड़ता है। इनके परिवार में गल्ला खरीदने-बेचने का आढ़ती कारोबार तथा कपड़ा बेचने का व्यवसाय होता था। इनके पिता का नाम हनुमान दास गुप्त और माता का नाम घसिट्टो देवी था। इनके पिता श्री हनुमान दास गुप्त रसिक मिज़ाजी थे। वे रीति काल ीन कविता ओं में रुचि रखते थे और ‘मान’ नाम से कुछ कविताएं भी लिखे थे। कवि केदारनाथ अग्रवाल का भी तत्कालीन परंपरानुसार बालविवाह हुआ और जब ये हाई स्कूल में पढ़ रहे थे , उसी समय इनका गौना आया। इनकी पत्नी नैनी के सुगर मिल मालिक बाबू बेनी प्रसाद की भांजी पार्वती देवी थीं। इनकी पत्नी बड़े घर की

केदारनाथ अग्रवाल : जीवन रेखा एवं रचना संसार

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 प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल लोक संवेदना के कवि है। उनके रचनाओं के आधार पर यहां लेख दिए जा रहे हैं- इनके जीवन के सभी पक्षों के साथ एक आदर्श दांपत्य जीवन भी जुड़ा है जिसे भारतीय संस्कृति की रीड़ माना जाता है। किंतु यहां लेख क्रमानुसार दिए जाएंगे- व्यक्तित्व निर्माण : रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में उसके परिवेशगत जीवन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि परिवेशगत अनुभव संघटित हो कर उसके मानस में जग- बोध की दृष्टि पैदा करते हैं। इस दृष्टि से रचनाकार के आचार-विचार , व्यवहार , सोच , चिन्तन , मनन और चरित्र का संघटन होता है , जिसे हम व्यक्तित्व कहते हैं। व्यक्तित्व एक आंतरिक प्रक्रि या है , जिसे व्यक्ति के कार्य व्यवहार से ही समझा या अनुभव किया जा सकता है। जब रचनाकार अपने गहन बोध को संसार के सामने ठोस रूप देना चाहता है तो उसे सृजन करना पड़ता है। जिसे उसकी कृति कहा जाता है। रचनाकार की कृति या सृजन उसके व्यक्तित्व का बाह्य प्रकटीकरण है। केदारनाथ अग्रवाल का स्वयं के बारे में अभिमत है- हम लेखक हैं कथाकार है हम जीवन के भाष्यकार हैं हम कवि हैं जनवादी। चांद

भारतीय मीडिया : टूटता विश्वास

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हमारे बचपन में मेरे गांव के सज्जन लोग कहा करते थे कि यह बात मीडिया तक किसी तरह से पहुंच जाए तो इसमें न्याय हो जाएगा और सरकार पहल कर अन्याय को दूर करेगी और पीडित पक्ष की सहायता और सुरक्षा करेगी। प्राय: मेरे आस-पास के लोगों में यह विश्वास था। किंतु तब समस्या था गांव के अधिकांश लोग पढ़े-लिखे नहीं थे। जो कुछ पढ़े-लिखे थे, उनमें भी अपनी बात लिखकर, पूरे संदर्भ के साथ कहने की क्षमता नहीं थी। लोग अन्याय को सहते थे और मीडिया तक पहुंच न रखने के कारण भगवान के भरोसे पर छोड़ कर, अन्याय को सहने के लिए मजबूर थे। मुझे एक घटना याद आ रही है, जाड़े का समय था मेरे पाही पर आलू हर साल की तरह इस साल भी लगी थी। आलू की बहुत अच्छी फसल हुई थी। बड़ी-बड़ी आलू पड़ी थी, कुल 80 बोरा आलू खोदने के बाद हुई थी। किंतु पिता जी बहुत जल्दी में थे कि कितने जल्दी आलू बेच दी जाए। क्योंकि देखते ही देखते आलू का दाम ₹ 350 से ₹150 तक आ गया था। वे बहुत चिंतित थे की भाव गिरता जा रहा है। मंडी ले जाने के लिए ट्रैक्टर नहीं मिल रहे थे, क्योंकि सभी किसान जल्दी में थे और भाव पानी की तरह नीचे की ओर बह रहा था। इसी दौरान गांव में एक घटना घट ग