संदेश

जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिन्दी या हिंदी क्या सही है के बहाने

दोस्तों ,   हिन्दी या हिंदी में कोई गलती नहीं है. क्योंकि सभी पंचमाक्षर ध्वनिया ही नासिक्य व्यंजन ही हैं जिसे (अं) अनुस्वार कहते हैं , कवर्ग , चवर्ग , टवर्ग , तवर्ग , और पवर्ग पहले आने पर इसे उसी वर्ग के पाँचवें व्यंजन के अनुसार उच्चारित किया जाता है. अन्यथा उसे अनुस्वार (अं) के अनुसार उच्चारित किया जाता है. जिसका चिह्न है- (ं) जैस-  कंठ = कण्ठ पढ़ते हैं जबकि संयम = सअं+यम = सम्+यम। अतः इसमें हिंदी और संस्कृत की केवल लिखने के तरीके अलग हैं परंतु पढ़ने के एक समान हैं। हाँ (ँ) यह चिह्न अनुनासिक स्वर है. अनुनासिक स्वरों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. जैसे हँस  और हंस मैं अंतर है. इनका वर्ण विच्छेद इस प्रकार किया जाना चाहिए. जैसे- ह+अँ+स = हँस जबकि ह+अं+स = हंस होता है. अतः हिंदी = हिन्दी हैं  इसमें कोई गलती नहीं है. हाँ यदि गलती सुधारना है और हिंदी को तीव्रतर करना है तो डॉक्टर , आॉफ़िस , ब्लॉग आदि के  स्थान पर उन शब्दों को लोक प्रचलित रूप डाक्टर , आफिस , ब्लाग ही लिखें ताकि हिंदी भाषा की स्वाभाविकता प्रभावित न हो. यदि अँग्रेजी शब्दों का अँग्रेजी उच्चारण ...
क्या आप को ऐसा नहीं लगता: सभी नारा तो लगाते है. सब लोग बराबर हैं, सबका हितैषी बनने की घड़ियाली आँसू गिराई जाती है. परंतु इस देश में हर पद और संस्थान में एक ऐसे वर्ग का कब्ज़ा हैं जो विशेष कर पिछड़े, दलितों, आदिवासियों से कहीं न कहीं नफरत करता है. उसकी मानसिकता इन्हें कमजोर और बुद्धिहीन सिद्ध करने की कोशिश करती रहती है. खुद को उच्चता के गर्व से भरी रहती है. वास्तव में साधन संपन्नता के बावजूद ये लोग योग्यता में हर दम पीछे रहते हैं. केवल छल-कपट और 420 से आगे निकल जाते हैं. क्योंकि ये एक बुरी सोच के साथ संगठित होते हैं कि ये उच्च है, बाकी सभी इनके सेवक हैं. संगठित होने की वजह से सफल होते हैं और योग्य लोग असफल होते हैं। झुकने और चापलूसी करने, दूसरों की शिकायत करने में इस वर्ग को महारत हासिल है. ये गद्दारी करने में भी आगे रहते हैं. ये कौन हैं? इन्हे पहचाने, नहीं तो विकास नहीं हो पायेगा. यह वर्ग हमेंशा यह कोशिश करता है कि देश की बोली-भाषा कभी प्रशासन और न्याय की भाषा न बने. दरअसल हिंदी की ये रोटियाँ खाते हैं लेकिन उसे विकसित और प्रसारित नहीं होने देते हैं. क्योंकि यह स...