विद्वान अँधेरा, ढपोरशंखी सूर्य, दोनों हमारे हैं, और हम, उनके सहारे हैं, इसलिए, थके हुए, हारे हैं...
प्यारे पाठक मित्रों, आज महान प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा एवं रचना संसार के अंतर्गत उनकी रचना "आग का आईना" के बारे में जानकारी दी जा रही है............ आग का आईना प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का ऐसा काव्य संग्रह है जिस में कवि के व्यक्तित्व के वि कास को देखा जा सकता है। काव्य संग्रह का प्रकाशन जुलाई , 1970 ई. में हुआ। इसमें संकलित 106 कविता एं , सितंबर , 1960 से मार्च , 1970 तक के बीच लिखी गई थीं। इस पुस्तक के बारे में केदारनाथ अग्रवाल कहते हैं कि “इसकी कविताएं पहले की मेरी कविताओं से बिल्कुल भिन्न हैं। दोनों के बीच की दूरी मेरे पहले और अब के केदार के बीच की दूरी है। यह दूरी मेरे दोनों अस्तित्वों को एक क्रमिक विकास से जोड़े है।” 34 इस संग्रह में केदारनाथ अग्रवाल का वह अनुभव पिरोया गया है , जिसे वे सरकारी वकील बनने के बाद अनुभव किए। केदार जी देश के विद्वानों और नेताओं के विषय में जो अनुभव किया उसे साफ लिख दिया है- विद्वान अँधेरा ढपोरशंखी सूर्य दोनों हमारे हैं औ