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अनबूझी बातें

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 दोस्तों कोरोना के संकट काल में जीवन संघर्षों और समाज व शासन के अंतरद्वंद्व को व्यक्त करती हुई यह समसामयिक कविता बहुत कुछ कहती है। कवि की अनुभूति उस धरातल को व्यक्त करती है जहां पर सच्चा इंसान स्वयं परिस्थितियों की पहेली बन गया है......................  -----अनबूझी बातें-----    हम ठग रहे,या ठगे जा रहे हैं, यह अनबूझ पहेली, न समझ पा रहे हैं।   पथ और पथिक,  दोनों साथ-साथ चलते, थकता है कौन?  न समझ पा रहे हैं।   धरती के घूर्णन से, दिन रात होते, ढलता है सूरज, या दिन रात ढल रहे हैं।   धधकता है सूरज, तपती ज़मीं है, ज़लती ज़मीं या सूर्यदेव जल रहे हैं।   जलती शमां तो, परवाने आ के जलते, जलन है कहाँ पर, न समझ पा रहे हैं।   कलियोंकी मुस्कान पे, मंडराते भँवरे. छलता है कौन?  न समझ पा रहे हैं।   उभरते कवि: श्री आर यन यादव जवाहर नवोदय विद्यालय, तैयापुर, औरैया, उ.प्र.   मो. : 8840639096  

जीवन और जगत

 जीवन और जगत एक विचारणीय विषय है,  जरा सोचिए इस संसार का निर्माण कैसे हुआ है , इस ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ और इस ब्राह्मांड के इस संसार में जो जीव जंतु और वनस्पतियों का निर्माण हुआ है वह भी अपने आप में एक चमत्कारी विषय है। सोचने की बात है इस जगत के सारे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का निर्माण, जीवन शैली और विकास में उनका आपसी क्या संबंध है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने की बहुत कोशिश की और बहुत कुछ सीमा तक विकासवाद के सिद्धांत ने इस प्रश्न का उचित उत्तर देने में सफल होता दिखाई देता है। किंतु बहुत से प्रश्नों के उत्तर अभी भी उलझे से दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर इसे इस तरह कहा जा सकता है कि जो इनके बीच एक आवृत्ति क्रमिक संबंध है वह कैसे है? उसका निर्धारण कैसे होता है? वह किस शक्ति के कारण संचालित होता है और क्यों उसमें निरंतरता बनी रहती है? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए शायद मानव ने प्राचीन काल से विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते रहे , इसी मानवीय प्रयोग का प्रतिफल है कि विश्व में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों, सभ्यताओं और विभिन्न प्रकार के धर्म आदि का जन्म हुआ। जिसके कारण