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भारतीय मीडिया : टूटता विश्वास

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हमारे बचपन में मेरे गांव के सज्जन लोग कहा करते थे कि यह बात मीडिया तक किसी तरह से पहुंच जाए तो इसमें न्याय हो जाएगा और सरकार पहल कर अन्याय को दूर करेगी और पीडित पक्ष की सहायता और सुरक्षा करेगी। प्राय: मेरे आस-पास के लोगों में यह विश्वास था। किंतु तब समस्या था गांव के अधिकांश लोग पढ़े-लिखे नहीं थे। जो कुछ पढ़े-लिखे थे, उनमें भी अपनी बात लिखकर, पूरे संदर्भ के साथ कहने की क्षमता नहीं थी। लोग अन्याय को सहते थे और मीडिया तक पहुंच न रखने के कारण भगवान के भरोसे पर छोड़ कर, अन्याय को सहने के लिए मजबूर थे। मुझे एक घटना याद आ रही है, जाड़े का समय था मेरे पाही पर आलू हर साल की तरह इस साल भी लगी थी। आलू की बहुत अच्छी फसल हुई थी। बड़ी-बड़ी आलू पड़ी थी, कुल 80 बोरा आलू खोदने के बाद हुई थी। किंतु पिता जी बहुत जल्दी में थे कि कितने जल्दी आलू बेच दी जाए। क्योंकि देखते ही देखते आलू का दाम ₹ 350 से ₹150 तक आ गया था। वे बहुत चिंतित थे की भाव गिरता जा रहा है। मंडी ले जाने के लिए ट्रैक्टर नहीं मिल रहे थे, क्योंकि सभी किसान जल्दी में थे और भाव पानी की तरह नीचे की ओर बह रहा था। इसी दौरान गांव में एक घटना घट ग