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मातृभाषा का वृक्ष

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यह कविता मातृ भाषा का महत्व व्यक्त करती है। मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में कभी टकराहट नहीं होती है, वास्तव में राष्ट्रभाषा मातृभाषा की मातृक या पैतृक विरासत ही होती है। जो अपने सभी कुलवंशों के बीच अपनत्व और संपर्क का कार्य करती है। अतः राष्ट्रभाषा से मातृभाषा को कोई खतरा नहीं होता, बल्कि मातृभाषा उससे समृद्ध ही होती है। ठीक उसी प्रकार मातृभाषों से राष्ट्रभाषा सदैव रस लेकर स्वयं को समृद्ध करते हुए अग्रगामी होती है। जहां मातृभाषाएं खत्म हो रही हैं, वहां राष्ट्रभाषा नहीं बच सकती है। यहां कोई दूसरी संपर्क भाषा बन जाए।  अतः उत्तम स्थिति उसी देश की होती है, जिसकी राष्ट्रभाषा ही संपर्क भाषा हो और मातृ भाषाओं से राष्ट्रभाषा सिंचित होती रहे, जैसे वर्तमान में भारतीय परिदृश्य में हिंदी भाषा की स्थिति है। आइए मातृभाषा पर एक कविता पढ़ते हैं-