केदारनाथ अग्रवाल : जीवन रेखा का प्रथम सोपान
दोस्तों केदारनाथ अग्रवाल व्यक्तित्व का अगला अंश प्रस्तुत है- प्रथम सोपान : बचपन से स्नातक तक (1911 से 1935) भारतीय लोक मानस की सं वेदना के सच्चे चितेरे कवि केदारनाथ अग्रवाल का बचपन ऐसा बीता की उनके मानस में भारतीय ग्रामीण जीवन धीरे धीरे रचता बसता गया। उनका बचपन बांदा जिले के बाबेरू तहसील के कमासीन गांव के लड़ को ं की तरह ही सामान्य गवईं जीवन था। गांव की जो सारी कम जोर ियाँ और अच्छाइयाँ होती हैं उसे उन्होंने भी खेला , खाया , पिया और जिया। इनका परिवार गांव का एक शिक्षित और संपन्न परिवार था। घर पर कपड़े और किराने की दु कान के अतिरिक्त सौ-डेढ़-सौ जानवर रहते थे। घर में दूध-दही की कोई कमी नहीं थी , गाँव में दूध खाना-पीना शारीरिक वि कास के लिए बहुत आवश्यक माना जाता है। यद्यपि केदार को दूध पसंद नहीं था फिर भी इन्हें जबरदस्ती पिलाया जाता था। परिवार में भूत-प्रेत , टोना-टोटका , कर्मकाण्ड , अंधविश्वास का पूरा पसारा था। घर का माहौल गाँव के अर्ध-सामन्ती पारंपरिक हिंदू परिवार का था। घर में दादा , पिता , चाचा , नाना , नानी के होने से वह एक संपूर्ण भरपूर-परि...