हिंदी नाटिका: अभागों की इच्छा “ नवीन फलदेशाई और रोशन वेलिप दोनों एक ही गांव के हैं. पालोलिअम बीच के आस-पास, काणकोण, तालूका में इनका घर पड़ता है. दोनों बच्चे कत्यायनी बानेश्वर विद्यालय में एक साथ पड़ते हैं” (स्कूल की कक्षा-पाँच खाली है, उसमें नवीन और रोशन आपस में चिट्चाट कर रहे हैं) नवीन: अरे रोशन! देख मेरी नई किताबें कितनी अच्छी हैं, पापा कहते हैं कि “ इन किताबों के पढ़ने से बच्चे सबसे तेज और बुद्धिमान बनते हैं. क्या तुम्हारे पास बुद्धिमान बनने की ऐसी किताबें हैं?” रोशन: नहीं, मुझे ऐसी किताबों की कोई जरूरत नहीं है. मैं बुद्धिमान हूँ, ऐसी किताबे न मेरे पास हैं न मुझे समझ में आती हैं. नवीन: ह्वाई यू डोंट वांट सच गुड बुक्स जो तुम्हें इंटेलिजेंट बनाती है. रोशन: मुझे समझ में आती नहीं ये किताबें. घर में भी कोई भी इसको नहीं समझता. नवीन: ओ >> यार! क्यों नहीं समझता है? ये पुस्तकें बहुत सरल और सस्ती हैं. मुझे तो सब समझ में आती हैं. तुमको और तुम्हारे आई, काका को, क्यों समझ में नहीं आती. क्या वे तुम्हारी तरह गधे हैं. रोश...