लुटते ग्रामीण

प्रायः यह देखा जाता है कि दुनिया के अन्य देशों में शासन का नेतृत्व समाज और साहित्य की दिशा को आगे ले जाने वाला होता है. परंतु भारत में ऐसा नहीं है. देश का इस प्रकार से अंग्रजीकरण किया गया है कि देश का वह नागरिक जो अंग्रेजी की ताकत से कमजोर है वह कत्तई आगे नहीं बढ़ सकता यहां तक कि वह अपना रोज-मर्रा का कार्य भी सफलता पूर्वक संपन्न करने में असमर्थ होता है. वजह यही मुख्य है भारत में विशेष कर उत्तर भारत में गरीबी और भ्रष्टाचार, गुण्डावाद पनपने की. इसको तबतक नहीं खत्म किया जा सकता जबतक कानून, नियम, प्रक्रिया  आदि का साहित्य, मैनुअल, पारदर्शी और स्पष्ट रूप में आम जनता को उपलब्ध नहीं होता. मैंन देखा है उत्तर प्रदेश की बैंक किसानो को तबतक ऋण नहीं उपलब्ध नहीं करती जबतक की उनके फिल्ड आफिसर को मनमाना शेयर नहीं मिल जाता. बेचारा हक़दार दो तरह से लुटता है. पहला सीधे वह अधिकारी से बात नहीं कर पाता , यदि कोई कोशिश भी करता है तो अधिकारी उसे हड़का देता है और वह कानून, नियम न जानने के कारण ऑफिसर को मनाने के लिए मजबूर हो जाता है. अब इस काम के लिए उसे लोकल नेता की सहारा लेना पड़ता है जै दलाली करता है. उस प्रकार वह हैरान होता है एक मिनट का कार्य सालो ं नहीं होता. दूसरा अब  उसे ऑफिसर को और अधिक धुस देना पड़ता है. साथ में दलाल भी उससे हिस्सा लेता है, काम कराने का नाजायज खर्च अलग से . इस प्रकार गांवों में किसान मजदूर मजबूर हैं लूटने और शोषण होने के लिए.
जब तक यह स्थिति नहीं बदलती तबतक कुछ संभव नहीं है. कृपया सत्तर % इस जनता को बचाओ. बहुत कम अधिकारी या कर्मचारी ऐसे पाए जाते हैं, जो अपना कर्तव्य करते हैं. 99% ऑफिसर इस किसान और मजदूर रूपी बकरी को खाने के फिराक में ही रहते हैं. क्या इसका समाधान लोकपाल या किसी पार्टी या सरकार के पास है? यदि हाँ तो हमें भी बताएं.


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