मित्र पर कविता


      मित्र
जिन्हें हम मित्र समझे हैं,                              
बहुत खामोश रहते हैं,
मालूम नहीं वे!
खुश या नाराज़ होते हैं,
हम तो अपनों को
शुभ प्रभात कहते हैं।

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