प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना : युग की गंगा

 दोस्तों केदारनाथ अग्रवाल के रचनासंसार के अंतर्गत आगे उनकी रचनाओं पर जानकारी प्रस्तुत की जा रही है- उनकी पहली काव्य रचना 'युग की गंगा' प्रस्तुत है-

काव्य संग्रह

1. युग की गंगा 

प्रस्तुत काव्य संग्रह कवि केदारनाथ अग्रवाल का पहला प्रकाशित काव्य संग्रह है। इसका प्रकाशन मार्च, 1947 ई. में हिंदी ज्ञान मंदिर लि. मुंबई द्वारा किया गया था। इसमें कुल 52 कविताएँ संकलित हैं। इस काव्य संग्रह की एक कविता ‘युग की गंगा’ के आधार पर इस काव्य संग्रह का नामकरण किया गया है। इस काव्य संग्रह की कविताओं से पता चलता है कि कवि की दृष्टि यथार्थवादी है परंतु वह साम्यवादी विचारों से प्रभावित है। कुछ कविताएं ‘चन्द्रगहना से लौटती बेर’, ‘बसंती हवा’, ‘सावन का दृश्य, ‘चांद-चांदनी’ और ‘बसंत’ आदि कविताएं रोमानी रंग के प्राकृतिक चित्रण हैं। किंतु अधिकांश कविताओं में प्रकृति सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं को प्रकट करने हेतु उपकरण के रूप में प्रकट हुई है।

मानव जीवन की विद्रूपताओं और पीड़ाओं से भरी जिन्दगी की छाया बड़ी विषाक्त, चोटीली और व्यंग्यात्मक रूप से काव्य में फैली हुई है। कवि समाज के सड़े-गले व्यवस्था रूपी कपड़े में पैबंद लगाने के लिए तैयार नहीं है बल्कि वह लाल क्रांति के सहारे समाज का आमूल-चूल परिवर्तन करने का प्रयत्न करते हुए दिखाई दे रहा है। उसका आग्रह नवीनता के लिए इतना प्रबल है कि वह पुराने को डूबो कर नव संसार स्थापित करना चाहता है। इसलिए कवि ने रस, अलंकार, और संगीत की तुकात्मक शैली को छोड़कर जनता की वाणी में जनता की गाथा गाने का प्रयास किया है। यहां से कवि की चेतना परंपरा, स्वार्थपरता, अहंकार, लालच, आत्मश्लाघा तथा विशिष्टता की व्यक्ति केंद्रित चेतना से मानवता, समता, प्राणी की महत्ता तथा वैज्ञानिक दृष्टि जैसी समष्टि केंद्रित चेतना की ओर अग्रसर हुई है। केदार का इस काव्य संग्रह के बारे में स्व-कथन है कि “मेरे काव्य – संकलन - युग की गंगा - में मेरी ऐसी परिवर्तित मानसिकता (चेतना) की रचनाएं हैं। फिर यही क्रम चालू रहा। मेरे अन्य संकलनों में इस तरह की रचनाएं संगृहीत हैं।”22 अतः यह काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल के भावी दृष्टिकोण की पहली अभिव्यक्ति है।

चूंकि इस काव्य संग्रह की कोई प्रति उपलब्ध नहीं है। इसलिए श्री अशोक त्रिपाठी के संपादन में इस संग्रह की दस कविताएँ ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ काव्य संग्रह में संकलित हैं, शेष बयालिस कविताएँ ‘गुलमेंहदी’ संग्रह में संकलित हैं।


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