आह ! कितना सुंदर है यह पालोलेम बीच

धरती और समुंदर का संगम
कितना मन मोहक पालोलेम बीच पर
हजारों मीटर श्वेत बालू का रेला
जिनपर नीली लहरें करती खेला
श्वेत और नीलें रंगों का मेला
देखने के लिए आते हैं परिंदे विदेशी
देशी प्रवासी चहकते हैं इस पर
नहाना और खाना, मजा मार कर जाना
हजारों पर्यटकों का रोज-रोज आना
 नहीं जान पायें क्या है पशाना
 मगर हैं यहाँ अद्भुत की शांति
मनमोह लेता है अपना बनाता
सन, सैंड,सी के अलावा भी कुछ है
अद्भुत शांति, मखमली शांति, स्निग्ध मदहोशी
रत्नाकर में डूबती संध्या, ऊँघते तारे पानी में
सिंधु पर बीछी रात की कालिमा पर दौड़ती
मछुआरों की टिमटिमाती छोटी, छोटी नावों से
लगता है जिंदगी कैसी भी हो पर चलना है
जैसे पालोलेम किनारे रात को चलती हैं
कोलियों की नावें, जीवन का पथ दिखाती
उन रातों में भी पालोलेम किनारे
मस्त,व्यस्त,पस्त लहरें, श्वेत रेत की ओर।
  

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