मेरी अनुभूति में गोवा
वर्षों से
हमने अनुभव
किया
गोवा हमारा सबसे है न्यारा
स्वतंत्रता, समानता
इसकी पहचान।
हजारों में
हो जाती है इनकी पहचान
है इसमें कौन?
गोवन इंसान
हिंदी, मराठी, अंग्रेजी है शान,
परंतु बहती है कोंकणी शरीर
में,
बन कर प्राण।
छोटे छोटे स्कूल
और छोटे छोटे मकान
प्यारी प्यारी स्त्रियाँ और
नौजवान।
गोवा के पश्चिमी तट
पर
जिसने खुश हो
कर दिया है-
मनोरम प्राकृतिक
सौगात
हे गोवन!
मेरे बीचों की रक्षा
करो
यही है तुम्हारे समृद्धि
का आधार।
तभी तक जानो,
स्वास्थ्य, समृद्धि
और सम्मान।
काणकोण, मडगाँव, वास्को या
हो पणजी
सांग, केपे, फोण्डा या
मह्पसा की मंडी
हर क्षेत्र
में मिल जाते
हैं,
कितान सुंदर, कितना भव्य,
जिसमें चलती हैं ज्ञान
शाला।
इससे जूड़े, सपनों को
संजोये लोग
खड़े हो, जैसे
हमसे कुछ दूर।
कोशिश कर के
लाते जब पास
वे बन जाते हैं अपने ख़ास
शायद अंग्रेजी खोने का डर?
ऐसा लगता है
गोवा देख रहा है
पाने के लिए
अपनी आन और शान
अपनी वैदिक संस्कृति
और संस्कार
जिसे गोवन!
कोंकणी भाषा
में , गणोत्सव में
और सिग्मोत्सव
में।
पाश्चात्य और
प्राच्य
संस्कृतियों का मेल
जोल
जिससे,
गोवा,
कृते: संतोष कुमार
गोवन 29/09/2013