ब्राह्मण और अब्राह्मण जातियों की सोच की टक्कर


ब्रह्मानंद ने कृष्णानंद को किया नहीं प्रणाम।
कृष्णानंद ने पूछा पंडित जी क्यों हो नाराज।
क्यों नहीं करता तुम मुझको प्रणाम
उम्र, ज्ञान, उपाधि, धन, दौलत,बल, विद्या
और सौंदर्य में हूं तुमसे महान।
क्या कारण है यजमान, नहीं करते हो प्रणाम।
ब्रह्मानंद बोला तुम कुछ भी हो जाओ,
किंतु होते हैं ब्राह्मण ही महान।
क्या तुम्हें दीखता नहीं शिखा, तिलक,
जनेऊं और भगवा वस्त्र हमारा।
जन्मना हम श्रेष्ठ है, यही है ईश्वर का विधान,
इसलिए हे कृष्णानंद हमको करो प्रणाम।
माना शिखा तुम रखा है, शिखा मैं रख लेता हूं,
वस्त्र भगवा जनेऊं धारण कर तिलक विधान कर लेता हूं।
सुनो! ब्रह्मानंद, करो प्रणाम विद्याज्ञान तुझे मैं देता हूं।
सब कुछ कर लो कृष्णानंद, जन्म कहां से लाओगे।
गुरु श्रेष्ठ भले हो जाओ तुम, जायते श्रेष्ठ नहीं हो पाओगे।
जन्म तुम्हारा श्रेष्ठ है कैसे यह बतलाओ ब्रह्मानंद?
पितृ मुखा से, मात्रृ गुदा से कहां से तू जन्माया है।
श्रेष्ठ हो तुम कैसे मानव से? यह भ्रमाभिमान ही तुम पाया है।
करो प्रणाम, भूलो अभिमान, नहीं तो अधम नर कहलाओगे।
नहीं मानता श्रेष्ठ तुम्हे, नीच विचार के स्वामी हो।
करना होगा तुम्हे प्रणाम, भ्रमानंद तुम नीचे हो।
गुरु तुम्हार, स्वामी भी मैं, तुम ताड़न के अधिकारी हो।
नहीं मिलेगा दो जग तुमको, सुदामा तुम खानदानी हो।
श्रम करना पड़ेगा, परजीवी! ज्ञानी तुमको पहचान गया।
ढोंग, ढकोसला नहीं चलेगा, विज्ञान का शंखानाद हुआ।
जीना है तो श्रम करो, भीक्षा का वरदान गया।
सीधे ब्रह्म से संबंध हमारा, दलाली का व्यापार गया।
ब्राह्मण बनने की झूठी काया का, झूठा काल बीत गया।
मैं ही ब्राह्मण, मैं ही जनता, मैं ही विज्ञान हूं।
मानव की खुशियों के कारण मैं ही कृष्णानंद हूं।
करो प्रणाम मुझे, ब्रह्मानंद मैं ही भारत में तेरा अंत हूं।
इस धरती को खुशहाल बनाने, आया मैं विज्ञान हूं।
सुनो अधम जड़ स्वामी, मैं जनता का भगवान हूं।
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