संघर्षी जीवन
संघर्षी जीवन
चलना सीखा तुमने सड़कों पर,
मैंने सीखा गलियारे में।
तुम उजियारे में सोए हो,
मैं सोया अँधियारे में।
बन साधक साधनारत अब भी ,
लक्ष्य एक ही पाने को,
इतनी कृपा करो प्रतिपालक,
जीने दो मुझे उजियारे में।
बचपन से लड़ना सीखा है,चक्रवात,तूफानों से।काँटों से अनुराग रहा और ,भूखे,प्यासे इंसानों से।खुशनसीब ,जीवन कृतार्थ,गर कर पाऊँ मानव सेवा,यही लालसा, रहूँ दूर मैं,छलिया, कपटी इंसानों से।
स्वाभिमान से जीने वाले ,
हमें भेदभाव स्वीकार नहीं।
दोहरी चालें चलने वालों,
छल छद्मता अंगीकार नहीं।
पाखण्ड और सामंतवाद,
मन तक फैला आतंकवाद,
पूरे समाज को निगल रहा,
हमें दम्भवाद स्वीकार नहीं।
नव युवा पढ़े ,स्वावलंबी बने,
रोजगार मिले, खुशहाल रहे।
भेदभाव रहित नवसमाज बने,
नफरत, हिंसा से दूर रहे।
कलुषित विचार,मन में विकार,
और कदाचार न पनप सकें,
समरसता,और जीवन में प्रेम,सबका समुचित सम्मान रहे।
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