ब्राह्मण भी शूद्र होता है

पूरे विश्व के अहीर, जाट व गूजर भाइयों और बहनों,

अहीर का मतलब यादव ही होता है। इसे विभिन्न अन्य नामों से भी स्थानीय स्तर पर जानते हैं। जैसे - ग्वाल, गोपाल, गवली, गोल्ला, धनगर, पाल आदि। जाट और गूजर भी अहीर की ही शाखाएं हैं। या ऐसा कहें कि जाट, गूजर और अहीर एक ही जनजाति हैं। ये जातियां भारत की सबसे श्रेष्ठ जातियां हैं। कथित पूजा पाठ का काम करने वाली जातियां आज अपने के ब्राह्मण कहती हैं। जबकि दुनियां में ब्राह्मण जाति नहीं बल्कि पद सोपान हैं, जिसे कोई भी मनुष्य अपने कर्म के अनुसार प्राप्त कर सकता हैं।  अहीर, जाट और गूजरों के मंदिरों में जो पूजारी काम करते हैं, स्वयं को ब्राह्मण कहते फिरते हैं। इसी प्रकार शूद्र पुजारी जनता के घरों में पूजा-पाठ करते हैं और जीवन यापन करते हैं। मान प्राप्त करने के लिए कभी स्वयं को ब्राह्मण कहने लगते हैं। वास्तव में जैसे धोबी कपड़ा धोता है, चमार चमड़े का काम करता है, नाई बाल काटने का कार्य करता है, वैसे ही पूजारी- पूजा पाठ का कार्य करता है। भारत में जातियां कामों के आधार पर संगठित हैं। कोई जाति छोटी और बड़ी नहीं होती। शूद्र का मतलब छोटा या तुच्छ होता है। जो भी गरीब है और शारीरिक श्रम कर के जीवन यापन करता है। वही शूद्र होता है। इस प्रकार भारत में ब्राह्मण के पद प्राप्त व्यक्ति का लड़का जो गरीब रह जाता है, वह भी धीरे धीरे शूद्र हो जाता है और शूद्र का बेटा भी पढ़ लिखकर, धन कमाकर ब्राह्मण बन जाता है। जैसे भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी शूद्र घर में पैदा हुए और अपने धार्मिक और अध्यात्मिक कार्यों से ब्राह्मण पद पर प्रतिष्ठित हैं।

जाट, अहीर, गूजर अपनी शक्ति और कर्मठता के कारण हमेशा राजा आथवा क्षत्रिय पद को शोभित करते रहे हैं, कभी कभी व्यापार में भी सफलता अर्जित करते रहे हैं। अतः अहीरों की पूजा पूजारी जातियां करती हैं। बहुत से जाट, अहीर, गूजर अपने धार्मिक कार्यों से ब्राह्मण पद प्राप्त करते रहते हैं, जैसे- स्वामी रामदेव आदि। विदेशी धर्मों जैसे इस्लाम, क्रिसचियन आदि में धार्मिक पदों का क्रम होता है। जिसे विदेशी धर्मों  का अध्ययन करने वाले अपनी योग्तानुसार मुल्ला, मौलवी आदि अथवा फॉदर, विशप आदि बनते हैं। उसका प्रभाव भारत के पूजारियों पर पड़ा और वे विदेशियों के समक्ष स्वयं को धार्मिक स्कॉलर के रूप में प्रस्तुत किए। विदेशी शासकों ने उन्हें अन्य जातियों से श्रेष्ठ मान लिया। जबकि हिंदू धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार ब्राह्मण पद प्राप्त परिवार में जन्में सुदामा शूद्र हो गए थे। अतः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य, शूद्र कर्म और गुण के अनुसार पद है। यह न जाति है और न आपस में ऊंचा नीचा है। हां जो कमजोर है, जो श्रम से जीवन यापन करता है, वह गरीब होता है। इसलिए उसे शूद्र और क्षूद्र (छूद्र) माना जाता है। 

रही जाट, अहीर व गूजर से जो जातियां मुकाबला नहीं कर पाती हैं तो अपनी खीस मिटाने के लिए उन्हें भी अपने वर्ग में शामिल करती हैं।


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