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आज बहुत दिनों के बाद

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आज बहुत दिनों के बाद रविवार को बैठा हँ अपने क्वार्टर के बाहर, दुनिया से अकेला एक ऐसे बिहड़ जगह पर जहां कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं आता, दूर दराज तक जंगल ही जंगल है, संपर्क का लैंडलाइन का सहारा है, बस बीएसएनल भाई का सहारा है, न जीवो न एअरटेल, न कोई और नेटवर्क सारे सिम बेकार पड़े बंद हो गए। कोई कूरियर सर्विस नहीं, बस पोस्ट ऑफिस का सहारा है, इस मनोरम जंगल में शहर से दूर सरकारी सेवा का आनंद ही अनोखा है, बस रिटायरमेंट के बाद, पेंशन का न होना ही बहुत बड़ा धोखा है। देख कर लोगों का भविष्य और अपना मन में डर सा लगता है, निजीकरण की यह फायदेमंद भूख क्या जनता के साथ धोखा है। आसियाना

विद्वान अँधेरा, ढपोरशंखी सूर्य, दोनों हमारे हैं, और हम, उनके सहारे हैं, इसलिए, थके हुए, हारे हैं...

  प्यारे पाठक मित्रों, आज महान प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल के जीवन रेखा एवं रचना संसार के अंतर्गत उनकी रचना "आग का आईना" के बारे में जानकारी दी जा रही है............ आग का आईना    प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का ऐसा काव्य संग्रह है जिस में कवि के व्यक्तित्व के वि कास को देखा जा सकता है। काव्य संग्रह का प्रकाशन जुलाई , 1970 ई. में हुआ। इसमें संकलित 106 कविता एं , सितंबर , 1960 से मार्च , 1970 तक के बीच लिखी गई थीं। इस पुस्तक के बारे में केदारनाथ अग्रवाल कहते हैं कि “इसकी कविताएं पहले की मेरी कविताओं से बिल्कुल भिन्न हैं। दोनों के बीच की दूरी मेरे पहले और अब के केदार के बीच की दूरी है। यह दूरी मेरे दोनों अस्तित्वों को एक क्रमिक विकास से जोड़े है।” 34       इस संग्रह में केदारनाथ अग्रवाल का वह अनुभव पिरोया गया है , जिसे वे सरकारी वकील बनने के बाद अनुभव किए। केदार जी देश के विद्वानों और नेताओं के विषय में जो अनुभव किया उसे साफ लिख दिया है-                  विद्वान अँधेरा       ढपोरशंखी सूर्य       दोनों हमारे हैं       औ

हड्डी की लोहे से टक्कर : फूल नहीं रंग बोलते हैं

 दोस्तों, केदारनाथ अग्रवाल के रचनासंसार की इस कड़ी में कई कारणों से सतत लेख प्रस्तुत नहीं हो पा रहे हैं, किंतु जैसे ही समय मिलता है, इसको निरंतरता देने की कोशिश जारी रहेगी.............. 'फूल नहीं रंग बोलते हैं' नाम  उनकी रचना के बारे जानकारी प्रस्तुत की जा रही है। यह काव्य संग्रह  उल्लिखित कवि की प्रतिनिध रचनाओं में से एक है। इसमें भारतीय समाज के किसानों, मजदूरों की दशा और संघर्ष को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है।                           फूल नहीं रंग बोलते हैं   प्रस्तुत काव्य संग्रह का प्रकाशन अक्तूबर 1965 ई. में परिमल प्रकाशन , इलाहाबाद द्वारा किया गया था। इस कविता संग्रह की भूमिका ‘मेरी ये कविता एं’ में स्वयं केदार नाथ अग्रवाल लिखते हैं कि “पहले भी मेरे तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। अब उ नम ें से एक भी उपलब्ध नहीं हैं। यह संकलन उस कमी की पूर्ति कर ता है।” 28 जिससे स्पष्ट होता है कि कवि ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ काव्य संग्रह को अपने काव्य जीवन का प्रवेशांक मानता है। इस काव्य संग्रह में उनके पूर्व प्रकाशित तीन अप्राप्य काव्य संग्रहो

प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना : नींद के बादल

  दोस्तों, प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना के अंतर्गत आज उनकी दूसरी रचना नींद के बादल के बारे में जानकीरी प्रस्तुत की जा रही है......                                                      2. नींद के बाद ल          प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का प्रकाशन की दृष्टि से दूसरा काव्य संग्रह है , जिस में कुल 42 कविता एँ संकलित हैं। इसी काव्य संग्रह की अन्तिम कविता ‘नींद के बाद ल’ के नाम पर इसका नाम कर ण किया गया है। परंतु ‘नींद के बादल’ काव्य संग्रह के अनुपलब्ध होने के कारण इस संग्रह की सभी कविताएँ कवि के अन्य काव्य संग्रह ‘गुलमेंदी’ में संगृहीत हैं। इस काव्य संग्रह में कवि के जीवन की प्रारंभिक दौर की कविताएँ संकलित हैं , जब वे अपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने की कोश िश कर रहे थे। कवि स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए लिखता है कि “मेरे काव्य संकलन ‘नींद के बादल’ में मेरी काव्य- चेतना की प्रारंभिक रचनाएं है। वे रचनाएं मेरे तब के मा नव ीय बोध को व्यक्त करती हैं।” 23 कवि ने इस काव्य में प्रेम-प्रणय और प्रकृति के अनेक चित्र खींचे है