दोस्तों, प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना के अंतर्गत आज उनकी दूसरी रचना नींद के बादल के बारे में जानकीरी प्रस्तुत की जा रही है......
2. नींद के
बादल
प्रस्तुत काव्य संग्रह केदारनाथ अग्रवाल का प्रकाशन की दृष्टि से दूसरा काव्य संग्रह है, जिसमें कुल
42 कविताएँ
संकलित हैं। इसी काव्य संग्रह की अन्तिम
कविता ‘नींद के बादल’
के नाम पर इसका
नामकरण किया गया
है। परंतु ‘नींद के बादल’ काव्य संग्रह के अनुपलब्ध होने के कारण इस संग्रह की सभी कविताएँ
कवि के अन्य
काव्य संग्रह ‘गुलमेंदी’ में संगृहीत हैं। इस काव्य संग्रह में कवि के जीवन की
प्रारंभिक दौर की कविताएँ संकलित हैं, जब वे अपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश कर रहे थे। कवि स्वयं इस बात को स्वीकार करते
हुए लिखता है कि “मेरे काव्य संकलन
‘नींद के बादल’ में मेरी काव्य-चेतना
की प्रारंभिक रचनाएं है। वे रचनाएं मेरे तब के मानवीय
बोध को व्यक्त करती हैं।”23
कवि ने इस काव्य में प्रेम-प्रणय और
प्रकृति के अनेक
चित्र खींचे
हैं। किंतु कवि
का मुकाबला जब जीवन के यथार्थ
से होता है, तब वह
प्रकृति में बिखरे असली
जीवन क्षेत्र
को देख पाता है। जीवन की वास्तविकताओं ने उसके दृष्टिकोण में जनवादी परिवर्तन लाती हैं। उसका स्व-प्रेम, संसार के सभी प्राणियों तक फैल जाता है, जिस कारण से
आगे की कविताओं
में वे मानव के हित
का गान करते हैं।
इस काव्य की कविताएँ छायावादी कविताओं की तुलना में प्रेम को और अधिक सहज स्वाभाविक एवं स्वस्थ रूप में ग्रहण करती हैं, कहीं भी प्रणय का स्वरूप विकृत नहीं हो पाया है। केदार नर-नारी
के आकर्षण को
स्वाभाविक मानते हैं और उसे
सहज भाव से व्यक्त
भी करते हैं। कवि अपनी पत्नी
में प्रिया को खुली आँखों से देखता है तथा
दांपत्य-प्रेम की गहन-मधुर-व्यापक चिर आकर्षक शक्ति
में प्रेम के सभी रुपों का रस पाता है-
तुम आओ तो रस से पूरित अंगूरी तन देखूँ,
लाल गुलाब
कपोलों के मैं, रसमय चुंबन
देखूँ,
मेरा भाग्य
उठाती ऊपर लज्जित
चितवन देखूँ,
भर-भर लोचन
देखूँ प्यारी, भर-भर लोचन
देखूं!!24
कवि स्वयं इस बात को स्पष्ट कर देता है कि- ‘नींद के बादल’
की कविताएँ नितांत वैयक्तिक भाव भूमि पर आधारित
हैं और उन पर किसी
प्रकार की सैद्धांतिक मतवादिता का आरोपण
नहीं किया जा
सकता। “‘नींद के बादल’ रात
के जादू के बाद दिन के लाल सबेरे के साथ ओझल हो
जाते हैं।”25 इस प्रकार कवि अपनी प्रारंभिक सोच में हुए परिवर्तन की घोषणा करता है। ‘नींद के बादल’
की कविताएं उस दौर की रचनाएं हैं जब छायावाद चरम ह्रास पर था। उत्तरछायावादी और प्रगतिशील कविताएं नए विकल्प के रूप में संघर्ष कर रहीं थी। इस संधिकाल के दौरान युवा केदारनाथ अग्रवाल छायावादी
कल्पनाओं और
रोमांटिकता से
प्रभावित थे। किंतु
जैसे ही उन्हें
वैचारिक धरातल
मिला वे नींद के बादल के घेरे
से बाहर आकर आलोक
की तलाश शुरू कर दिए। इसलिए
आगे उन्होंने
‘नींद के बादल’ जैसी छायावादी, रोमानी अथवा
भाववादी प्रवृत्तियों से युक्त रचनाओं से मुक्त हो लिए। इस काव्य संग्रह की विशिष्टता यह है कि इसकी भाषा की चंचलता और गतिशीलता नई
संभावनाओं के द्वार
खोलते हैं।