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संकल्प

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प्रिय पाठक दोस्तों, इस पर आप के लिए जो कविता है वह समसामयिक घटना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष में देखती हुई, उस दर्द को व्यक्त करती है जो नारी जाति और कमजोर जातियों को कथित हिंदू सनातनी धर्म के खूंखारपन के कारण आज आधुनिक युग में भी झेलने के लिए मजबूर कर रहा है। आशा करता हूं कि उभरते कवि श्री आर एन यादव की यथार्थ वयानी वाली 'संकल्प' कविता सोचने के लिए प्रेरित करेगी............. **** संकल्प ****   कितने ही हैवानों ने मिलकर, मानवता का अंतिम संस्कार किया। हबसी, बेजमीर खूनी भेड़ियों ने, इंसानियत का संहार किया। संविधान के रखवालों ने भी, बढ़ चढ़कर हैवानियत का साथ दिया। सारे सबूत मिटा डाले, दोष परिजन पर ही लाद दिया।   चांदी के जूते की ताकत,  मानवता पर भारी है। लक्ष्मी माता की चकाचौंध से, चहुँओर छायी अंधियारी है। जमीर ,चेतना,विवेक शून्य, इन सब की गई मति मारी है। अन्याय गर न रोक सके, तो अगली तुम्हारी बारी है।  क्या दुनिया का दस्तूर यही, निर्बल ही सताए जाते हैं। शेरों की बलि नहीं दी जाती, बकरे ही चढ़ाए जाते हैं। रामराज्य की दुहाई देने वाले, निज भगिनी,सुता भूल जाते हैं। वासना,आसक्ति के वशीभूत, निर्ब

पंछी का भगवान

 पंछी हूं नील गगन में, मैं उड़ जाता हूं, धरती के हर कोने पर घूमने जाता हूं, आसमान की गलियों गलियों को निहारता हूं, धरती पर हर फूलों से मिल आता हूं, विशाल समुंदर के कोने कोने में जाता हूं, उनके अल्लाह ईश्वर ईशा का पता लगाता हूं, क्या उनके भिन्न-भिन्न धर्म और भगवान बने हैं? क्या अल्लाह के नाम पर जलीय जीव जंतु लड़ते हैं? फिर हम धरती के फूलों से पूछता हूं, हिंदू हो या मुसलमान, ब्राह्मण हो या दलित महान, तुम्हें किसने खिलाया है, रंग बिरंगी रूप में सजाया है, पूरी दुनिया में तुम्हें कौन फैलाया है अल्लाह या राम? पूरी दुनिया में सुगंध फैलाते हो, हिंदू हो या मुसलमान? फिर नीले आसमान में उड़ जाता हूं, भगवान की गलियों में भटकता हुआ, पहले उनके जीवन और उनकी सभ्यता समझता हूं, सभी ख़ुदाओं का घर खोजता हूं, सबसे पहले अल्लाह से मिलने जाता हूं, पूछता हूं उनसे इस धरती पर जो इंसान हैं, उनमें से कौन आपके हैं और कौन राम के हैं? किसको मुसलमान और किस को काफिर बनाया है। मैं भगवानों की गलियों में भटकता रहा, वहां अल्लाह ईश्वर खुदा भगवान का, अलग अलग घर नहीं खोज पाय

जीवन और जगत

 जीवन और जगत एक विचारणीय विषय है,  जरा सोचिए इस संसार का निर्माण कैसे हुआ है , इस ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ और इस ब्राह्मांड के इस संसार में जो जीव जंतु और वनस्पतियों का निर्माण हुआ है वह भी अपने आप में एक चमत्कारी विषय है। सोचने की बात है इस जगत के सारे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का निर्माण, जीवन शैली और विकास में उनका आपसी क्या संबंध है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने की बहुत कोशिश की और बहुत कुछ सीमा तक विकासवाद के सिद्धांत ने इस प्रश्न का उचित उत्तर देने में सफल होता दिखाई देता है। किंतु बहुत से प्रश्नों के उत्तर अभी भी उलझे से दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर इसे इस तरह कहा जा सकता है कि जो इनके बीच एक आवृत्ति क्रमिक संबंध है वह कैसे है? उसका निर्धारण कैसे होता है? वह किस शक्ति के कारण संचालित होता है और क्यों उसमें निरंतरता बनी रहती है? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए शायद मानव ने प्राचीन काल से विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते रहे , इसी मानवीय प्रयोग का प्रतिफल है कि विश्व में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों, सभ्यताओं और विभिन्न प्रकार के धर्म आदि का जन्म हुआ। जिसके कारण

कहते हैं डर के आगे जीत है

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माता वैष्णव देवी के दर्शन करने के मार्ग पर लगभग पांच सौ मीटर से अधिक ऊंचाई पर बने इस घर के आस पास कैसे बकरी निडर हो कर घूम रही थी। जहां से नीचे देखने पर सामान्य आदमियों के पैर फिसल रहे थे। क्या उन लोगों से ज्यादा बहादूर नहीं है जो इसे मारते हैं या निरीह आदमियों की हत्या करते हैं। क्या भगवान , गॉड और अल्ला ने इस बकरी और उस आदमी दोनों को नहीं बनाया है। किंतु जब बकरी आदमी को नहीं मारती तो फिर आदमी क्यों बकरी को मारता है? सोचें अगर आप की कोई बकरी हत्या करती और कहती सर्वोच्च शक्ति की इच्छानुसार हो रहा है तो आप को कैसा लगता। अतः इस सुंदर ग्रह की सुंदरता की रक्षा करें और बर्बरता से सभ्यता की ओर बढ़े। यही इस बहदूर बकरी का संदेश है।