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संकल्प

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प्रिय पाठक दोस्तों, इस पर आप के लिए जो कविता है वह समसामयिक घटना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष में देखती हुई, उस दर्द को व्यक्त करती है जो नारी जाति और कमजोर जातियों को कथित हिंदू सनातनी धर्म के खूंखारपन के कारण आज आधुनिक युग में भी झेलने के लिए मजबूर कर रहा है। आशा करता हूं कि उभरते कवि श्री आर एन यादव की यथार्थ वयानी वाली 'संकल्प' कविता सोचने के लिए प्रेरित करेगी............. **** संकल्प ****   कितने ही हैवानों ने मिलकर, मानवता का अंतिम संस्कार किया। हबसी, बेजमीर खूनी भेड़ियों ने, इंसानियत का संहार किया। संविधान के रखवालों ने भी, बढ़ चढ़कर हैवानियत का साथ दिया। सारे सबूत मिटा डाले, दोष परिजन पर ही लाद दिया।   चांदी के जूते की ताकत,  मानवता पर भारी है। लक्ष्मी माता की चकाचौंध से, चहुँओर छायी अंधियारी है। जमीर ,चेतना,विवेक शून्य, इन सब की गई मति मारी है। अन्याय गर न रोक सके, तो अगली तुम्हारी बारी है।  क्या दुनिया का दस्तूर यही, निर्बल ही सताए जाते हैं। शेरों की बलि नहीं दी जाती, बकरे ही चढ़ाए जाते हैं। रामराज्य की दुहाई देने वाले, निज भगिनी,सुता भूल जाते हैं। वासना,आसक्ति के वशीभूत, निर्ब

दक्षिण की रेल यात्रा

आज सुबह ग्यारह बजे के लगभग त्रिवेंद्रम सेंट्रल राजधानी एक्स्प्रेस वातानुकूलित कोच में सीटों से ज्यादा लोग सवार थे। 12 दिसंबर, 2019 की ठंडी ने मानो सीएए और एनआरसी के विरोध में उठी गर्मी को ठंडा कर रही थी। कोच में सवार लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के बोली, पहनावा, खान-पान वाले लोग थे। जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी थे। गाड़ी धीरे-धीरे निजामुद्दीन स्टेशन से केरल के लिए निकल चुकी थी। मन में यही सोच रहा था कि उत्तर से दक्षिण तक के भारत का दर्शन होगा। मन में लग रहा था कि शयनयान कोच शायद भारत को समझने के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। हमारे प्रकोष्ठ में आठ सीटें हैं, जिनमें एक मुस्लिम परिवार और छः हिंदू परिवार हैं। हिंदू लगभग खामोश हैं किंतु सभी मुसलमान आपस में पूरे कोच में दुआ-सलाम और बातचीत कर रहे हैं। उत्सुकता बस मैंने मुस्लिम परिवार से पूछा, “क्या ये लोग आप के रिश्तेदार हैं? किसी शादी-विवाह में आप लोग जा रहे हैं? बुरकाधारी महिला, जो अब तक बुरका उतार के रख दी थी, बोली- नहीं साहब हम लोग केरल के हैं और वे लोग हमारे परिचय के नहीं हैं। मैंने पूछा, “देखने से पता नहीं चल