दक्षिण की रेल यात्रा
आज सुबह
ग्यारह बजे के लगभग त्रिवेंद्रम सेंट्रल राजधानी एक्स्प्रेस वातानुकूलित कोच में सीटों
से ज्यादा लोग सवार थे। 12 दिसंबर, 2019 की ठंडी ने मानो सीएए और एनआरसी के विरोध
में उठी गर्मी को ठंडा कर रही थी। कोच में सवार लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के बोली,
पहनावा, खान-पान वाले लोग थे। जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और
बच्चे भी थे। गाड़ी धीरे-धीरे निजामुद्दीन स्टेशन से केरल के लिए निकल चुकी थी। मन
में यही सोच रहा था कि उत्तर से दक्षिण तक के भारत का दर्शन होगा। मन में लग रहा
था कि शयनयान कोच शायद भारत को समझने के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है।
हमारे
प्रकोष्ठ में आठ सीटें हैं, जिनमें एक मुस्लिम परिवार और छः हिंदू परिवार हैं।
हिंदू लगभग खामोश हैं किंतु सभी मुसलमान आपस में पूरे कोच में दुआ-सलाम और बातचीत
कर रहे हैं। उत्सुकता बस मैंने मुस्लिम परिवार से पूछा, “क्या ये लोग आप के
रिश्तेदार हैं? किसी शादी-विवाह में आप लोग जा रहे हैं? बुरकाधारी महिला, जो अब तक
बुरका उतार के रख दी थी, बोली- नहीं साहब हम लोग केरल के हैं और वे लोग हमारे
परिचय के नहीं हैं। मैंने पूछा, “देखने से पता नहीं चल पा रहा है, आप लोग इतने
मिक्स कैसे हैं?” मुस्लिम टोपी-धारी और लटकी हुई दाढ़ी बाले आदमी ने कहा- हम
मुसलमान हैं, हममें आपसी भाई-चारा है, इसलिए पहचान और रिश्ते की घुलने मिलने के
लिए दरकार नहीं होती। मैंने देखा सबकी जुबान पर उर्दू से बोझिल हिंदी थी।
हमारे सामने
बाली सीट पर चंदन का तिलक लगाए, अपनी मोटी, गोरी-चिट्टी धर्म पत्नी के साथ कोई
साठ-पैंसठ साल के दंपति बैठे हैं जो मुंबई अपने बहू-बेटे से मिलने जा रहे हैं।
मेरी बगल में एक कन्नड़ परिवार बैठा है जिनकी उम्र तीस-पैंतीस साल होगी और सात में
उनका बेटा बैठा है जिसकी उम्र नौ-दस साल होगी। इसके अतिरिक्त एक सीट पर एक मराठी
महिला बैठी है और उसके पति की सीट कन्फर्म नहीं हुई है और वे अपनी पत्नी वाली सीट
पर पत्नी के साथ आधा बैठे हुए हैं।
धीरे
धीरे गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी, फरीदाबाद से आगे मथुरा स्टेशन पार कर चुके थे,
मुस्लिम परिवार से मैं बात कर रहा था और मेरे कोच का पूरा प्रकोष्ठ शांत बैठा हुआ
था जैसे वे एक दूसरे से अपरिचित हों, उनका आपस में कोई संबंध न हो। हमारी गाड़ी
भरतपुर स्टेशन पार कर कोटा की ओर बढ़ रही थी। दोपहर का समय था बाहर ठंडी की खिली
धूम फैली हुई थी, आसमान धुंधला सफेद रंगों से भरा था। सवाई माधवपुर स्टेशन पर
गाड़ी रुकती है। कन्नड़ परिवार का पुरुष अपने बेटे के साथ उतरता है और उसे खाने की
सामान के साथ अमूल दूध दिलाता है।
दोपहर
के कुछ ढाई-तीन बज रहे थे, कन्नड़ परिवार का लड़का द्वारा दूध की बोतल खोलने से
सामने बैठे चंदनधारी परिवार जो उस समय, घर का बनाया हुआ स्वादिष्ट खाना खा रहा था,
के खाने में छींटा पड़ गया। स्वस्थ मोटी औरत ने उसे घूरा और छींटे पड़े भोजन को
बदल कर दूसरा खाना खाया।
दूसरी ओर
मुस्लिम परिवार लगभग चिकन, रोटी व चावल चाव से खा रहे थे। इसी बीच मैंने कन्नड़
भाषी व्यक्ति से पूछा, आप क्या हैं? उसने बताया उडपी के हिंदू हैं। मराठी भाषी भी
गोल टीका लगाया था, वह भी मराठी हिंदू था।
मैंने
सोचा जब हिंदूओं की संख्या अधिक होने के बाद भी ये आपस में मुसलमानों जैसा घुल-मिल
क्यों नहीं पा रहे हैं? मैंने मराठी मनुष्य से पूछा क्या आप हिंदू हैं, उसने भी
हां में उत्तर दिया। इसके बाद मैंने टीकाधारी व्यक्ति से पूछा क्या आप भी हिंदू
हैं? उसने ऊपर नीचे देखकर बड़ी गंभीरता के साथ धीरे से उत्तर दिया कि- “हम हिंदू
ब्राह्मण है?” मैंने
कन्नड़ भाषी दंपति के लड़के से ऊपर जा कर बैठने को कहा ताकि मराठी भाषी पुरुष आराम
से बैठ सके। क्योंकि ब्राह्मण की पत्नी पूरी अपनी सीट पर फैल कर बैठी हुई थी और
मराठी महिला को दबाती जा रही थी। मराठी पुरुष जब आराम से हमारी तरफ बैठ गया तो
हमने उनसे पूछा आप कौन से हिंदू हैं? उसने उत्तर दिया मैं मराठा क्षत्रिय हूं।
मेरे
सामने चार प्रकार के लोग थे एक मुसलमान, एक हिंदू ब्राह्मण, एक मराठा क्षत्रिय और
कन्नड़ हिंदू। मैंने पूछा क्या ब्राह्मण कोई धार्मिक पद है जो हिंदू लोग प्राप्त
करते हैं? ब्राह्मण हिंदू ने कहा- “नहीं, यह हमें पैदाइशी मिलता है?” मैंने पूछा
पैदाइशी ब्राह्मण होने से आप को क्या लाभ है? हिंदू ब्राह्मण की पत्नी ने कहा- “हम
सभी हिंदूओं में श्रेष्ठ हैं, हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मण देवता के
समान होते हैं। पूजा-पाठ और धर्मिक क्रिया-कलाप करने का अधिकार केवल ब्राह्मण को
है, बाकी लोग हमसे नीचे होते हैं। मेरे मन में जिज्ञासा हुई, जिसके कारण हिंदू
ब्राह्मण से पूछा- “क्या मुसलमान भी आप से नीचे होते हैं? तो हिंदू ब्राह्मण ने उस
मुसलमान की ओर देखा जो मौलवी लग रहा था और कहा- “नहीं वे बराबर के होते हैं,
क्योंकि वे हिंदू नहीं हैं, उनका धर्म अलग है।” मैं सोच रहा था कि हिंदू धर्म वाले
के लिए ब्राह्मण श्रेष्ठ होता है, परंतु वह मुसलमान आदि धर्मावलंबियों के बराबर
होता है।
मराठा पुरुष से मैंने पूछ- “मराठा क्षत्रिय कौन होते हैं?” उन्होंने
बताया “शिवाजी के वंशज हैं, हम क्षत्रिय हैं, हम शासक जाति हैं, युद्ध करना और
शासन करना हमारा अधिकार है।” मैंने पूछा क्षत्रिय कैसे बना जा सकता है? उन्होंने
कहा- “जो बहादुर और वीर गुणों से युक्त होता है, वही क्षत्रिय होता है।” मैंने
पूछा क्या आप ब्राह्मण को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं? मराठी महिला जो पहले से मोटी
ब्राह्मण महिला से खार खाए हुए थी, ने उत्तर दिया-“ये लोग भिखमँगे हैं, चापलूसी
करना इनका धर्म है, धन के लिए धर्म बेचते फिरते हैं। इनको हम लोग श्रेष्ठ नहीं
मानते। हाँ जैसे नाई को बाल काटने के लिए, धोबी को कपड़ा धोने के लिए वैसे ही
पंडित को पूजा-पाठ आदि धार्मिक कर्मकांड कराने के लिए बुलाए जाता है।
हम
क्षत्रियों के लिए नाई, धोबी, पंडित, पुजारी सब बराबर होता है। हिंदू ब्राह्मण से
रहा नहीं गया और उसने मराठी दंपति को शूद्र कहा और शिवाजी को शूद्रों का वंशज कहा।
मराठी दंपति ने हिंदू ब्राह्मण को हड़काते हुए कहा- “बता तू कैसे ब्राह्मण है?
क्या तू ब्रह्मा के मुख से टपका था? सब लोग बराबर है।” किंतु हिंदू ब्राह्मण सहमते
हुए भी कहे जा रहा था पुराणों, धर्मग्रंथों आदि में लिखा है कि सनातन हिंदू धर्म
में ब्राह्मण सभी जातियों से श्रेष्ठ होता है। मैं मोबाइल में गूगल कर के दिखा रहा
था कि सनातन हिंदू धर्म में जन्म के आधार पर चार वर्ण होते हैं- ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। जिसमें सबसे ऊंचे ब्राह्मण और सबसे नीचे शूद्र माने
जाते हैं। अतः हिंदू ब्राह्मण से मैंने पूछा कि शूद्र कौन है? कैसे पता चलेगा?
उसने कहा- “ये वेटर, अटेंडेंट, साफ-सफाई करने वाला सभी शूद्र होते हैं, इनका रंग सांवला
या काला होता है, ये नीच प्रवृत्ति के कार्यों में रत रहते हैं। आजकल आरक्षण की
वजह से कुछ शूद्र ऊंचे पदों पर भी पहुंच गए हैं, किंतु उनकी जाति का पता लगा कर,
उनका वर्ण जाना जा सकता है। तब तक वेटर चाय-कॉफी बेचता हुआ आया। मैंने कहा सबको
चाय पिलाओ। सभी ने मना कर दिया किंतु मैं और कन्नड़ पुरुष ने चाय का आनंद लिए।
वेटर से पूछा कि भाई आप की जाति क्या है? उसने बिना रुके कहा मैं ब्राह्मण हूं,
कौन सा ब्राह्मण? सामने बाले हिंदू ब्राह्मण ने पूछा। उसने जबाब दिया- पंडित जी
मैं वत्स ब्राह्मण हूं जो सबसे ऊंचा होता है। मैं यही सोच रहा था कौन ऊंचा? कौन
नीचा? कैसे हो निर्धारण? हिंदू धर्मग्रंथ या योग्यता का कोई वैज्ञानिक
पैमाना..........।
मुसलमान
से पूछा कि आप मौलवी है या मुसलमान, उसने कहा हम तो मुसलमान हैं, जो मजहबी इल्म लेता
है, वह मौलवी बन जाता है। मैंने पूछा मुसलमानों में सबसे ऊंचा कौन होता है? कोई
नहीं सब मुसलमान बराबर होते हैं।
शाम हो
गई गाड़ी गुजरात प्रदेश में प्रवेश कर चुकी थी, बडोदरा आने बाला था, सभी सहयात्री
खा-पीकर सोने की तैयारी कर रहे थे। हमारे सहयात्री भी अपनी सीटें खोलकर सोने लगे। पता
नहीं कब नींद आ गई और सुबह सूरज की रोशनी प्रकोष्ठ में झिलमिला रही थी, गड़ी धीरे
धीरे चल रही थी। हिंदू ब्राह्मण परिवार मेरे उठने से पहले वसई रोड़ स्टेशन पर
गाड़ी से उतर चुका था और हम पनवेल पार कर रत्नागिरी की तरफ बढ़ रहे थे। सीटें खाली
हो गई थीं सभी लोग आराम से बैठे हुए गपशप कर रहे थे। कन्नड़ पुरुष से मैंने पूछा
आप क्या हैं? तो उन्होंने उत्तर दिए- “मैं इतिहास का दिल्ली के कालेज में प्रोफेसर
हूँ, किसी खास काम से गांव जा रहा हूँ।”
मैं
यही सोच रहा था कथित हिंदू धर्म कितना टूटा हुआ धर्म है। इसे जातियों के बोझों का ढ़ेर
कह सकते हैं। इसका ब्राह्मण जाति रूपी बोझ सदैव शीर्ष पर बैठने के लिए दूसरे जाति
रूपी बोझों को कमजोर करने और नीचे गिराते रहने में अपनी विजय समझता है। शायद यही
कारण है कि कश्मीर से बंग्लादेश तक की बहुसंख्यक जनता ने इस्लाम अपना लिया और ब्राह्मण
धर्म पतित होते हुए पतन की ओर बढ़ रहा है, किंतु हिंदूओं के लिए उसकी ऐंठन नहीं मर
रही है।
-संतोष गोवन
******
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें