क्या यह शोषण नहीं ???

सुप्रीम कोर्ट प्रशासन: हिंदी में उत्तर से इंकार
समाचार पत्रों में खबर लिखी थी आरटीआई एक्ट के अंतर्गत पूछी गई सूचना को उच्चतम न्यायल के प्रशासन ने सूचना हिंदी में देने सें मना कर दिया. जरा सोचिए ऐसा करके ये क्या बताना चाहते हैं. हिंदी को रोकना चाहते हैं? या अंग्रेजी को बढ़ाना चाहते हैं? नहीं. ये जनता को मूर्ख बनाए रखने की चाल मात्र हैं ताकि उसकी कमजोरी से ये जनद्रोही, अपनी लूट, शोषण बड़प्पन को बनाए रखें. भारत लोकतंत्र है. यहाँ लोक की ही भाषा में जब कार्य न्यायाल में नहीं होगा? तो कहाँ होगा? कैसे लोक को न्याय मिलेगा?
देश के नागरिक को देश की किसी भी महत्त्वपूर्ण भाषा में माँगी गई सूचनाओं को सर्वोच्च न्यायलय को देना नैतिक और प्राकृतिक जिम्मेदारी है. हिंदी जैसी विश्व की टॉप महत्त्वपूर्ण भाषा जो कि इस देश के आम नागरिकों की संपर्क भाषा है, में सूचना न देना, सर्वोच्च न्यायाल द्वारा न्याय के साथ अन्याय है. जो लोग ऐसे विचार रखते हैं वे जनता के गद्दार हैं. जनता जब तक इस बात को नहीं समझेगी तब तक जनता का ये गधे शोषण करने के लिए ऐसे ही नाटक करते रहेंगे।
फिजी देश को देखें और सीखें कैसे वह भारतीयों को जो यहाँ से मजदूर बन कर गए थे, उनके प्राकृतिक अधिकार को ध्यान में रखते हुए वहाँ के नव संविधान को वहाँ की प्रमुख भाषाओं में अनुवाद कर के देने जा रहा है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में भी जहाँ हिंदी सहित किसी भी भाषा की जनता को जरूरत है उसे पढ़ाया जा रहा है. सोचिए वे कितने वैज्ञानिक दृष्टि वाले हैं? हम अपनी ही जनता से ईर्ष्या करने वाले लोग हैं. तेज को खराब, योग्य को अयोग्य घूस और पहुँच से करने वाले लोग हैं. खुद तो इतने नीच हैं कि दूसरों का हक खाने के लिए नीचे गिरते रहते हैं. किसी की जरूरत, योग्यता, परेशानी के कारणों को न समझ कर, उसे जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के चश्में से देखते हैं.

मुझे लगता है कि यह गंदगी यहाँ के खून में है, इस लिए इतिहास में भी यहाँ की जनता कभी देश की रक्षा, देश के विकास, देश के प्रशासन और देश के अर्थतंत्र में समुचित रूप से कभी भाग ले नहीं पाई. उसे हमेशा कमजोर बनाये रखा गया. उसे कुछ तथाकथित ज्ञानी रूपी मूर्खों के सामने सिर झुकाए रखने के लिए विवश होना पड़ा. वही बात क्या आज नहीं है? अरे! तुम्हें तो न्याय सभी के साथ करना चाहिए, चाहे वह अमीर हो या गरीब, नहीं तो कहें का न्यायाल? ऊपर से सर्वोच्च न्यायालय ..... हाँ हाँ?? जनता को न्याय देता नहीं ऊपर से सुपरिम और सर्वोच्च बना है? नाम चीनी प्रसाद लज्जत चोटे इतना नाहीं? आप सुपरिम तभी तक हो जबतक जनता सिर झुकाने के लिए मजबूर है. बनाए रहो मजबूर नहीं तो कौन सिर झुकाएगा? कैसे सुपरिम कह लाओगे? जानते हो भारत हमेशा क्यों गुलाम हुआ, राजपूतों की झूठी शान को मुसलमानों ने रौंद दिया. जनता उनके भी सामने सर झुका ली. फिर मुसलमानों की झूठी शान को  अंग्रेजों ने बेपर्दा किया, जनता वहाँ भी सर झुका ली. स्वतंत्रता संघर्ष में कुछ जनता जागरुक हुई. किंतु फिर नेताओ की ज्ञान-शान ने सिर झुकाने के लिए मजबूर कर दिया है. हम तो जनता हैं, हम तो कभी उठे ही नहीं, जब उठने की कोशिश किए, तब तब आप ने झुकाए, मक्कारी, बेमानी और मूर्खता के हजारों उदाहरण आप के साथ है, फिर भी हमी बेकार हैं, हमारा जीवन बेकार है, हमारी भाषाएं बेकार हैं. किंतु आप जानते हैं, आप कितने... अच्छे... हैं ???

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