बालिका ही स्त्री है!
यहाँ एक अनुभव की बात बताना चाहता हूँ कि सभी
पालक चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ने-लिखने, खेलने-कुदने में श्रेष्ठ योग्यता
प्राप्त करें। लेकिन अनुभव यह बताता है कि जिस बच्चे की माँ अधिक शिक्षित,
बुद्धिमान, विवेकशील, शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता से युक्त होती है, उसका बच्चा
उतना ही होशियार और तेज होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि माता और बच्चे के विकास
में समानानुपातिक संबंध होता है। अत: प्रकृति की प्रक्रिया अनुसार मादा जीव होने
के कारण माता को बच्चे के जनन, संरक्षण और विकास हेतु उसके पुरूष साथी से सदैव
अधिक उपयुक्त पाया जाता है। जब यह निश्चित है कि माता की योग्यता बच्चे के विकास
को निर्धारित करता है, तो माता की स्वतंत्रता, शिक्षा पुरूषों से अधिक होनी चाहिए।
इस
प्रकार लड़कियों की शिक्षा
लड़कों की शिक्षा से
अधिक
महत्त्वपूर्ण है। यदि
कोई भी पालक यह चाहता है कि उसके बच्चों
का समु चित विकास
हो, तो उसे स्वयं
की लड़की की शिक्षा, स्वस्थ्य और
स्वतंत्रता
का समुचित ध्या न
देना
होगा। अत: सभी
अभिभावकों से अपेक्षा
है कि वे अपने घर
का विकास कर इस देश के विकास में योगदान दें आर्थात लड़की
पढ़ाएँ, समाज को
आगे बढ़ाएँ। कभी
उन विषयों पर भी विचार
करने की आवश्यकता
है। क्यों स्त्रियों को पुरूषों से निचे मान ा जाता है। इसकी मूल वजह यौन संबंध को माना जा सकता है। क्योंकि समाज इसे मानव
की आवश्यता मान कर, इसे सहज
रूप में अभी तक नहीं ले पाया है। इस कारण सारी इज्जत और मान इसकी रक्षा करने में हमारा समाज लगा
देता है। परिणाम यह होता है कि स्त्रियों को इसका मुहरा बनना पड़ा। जिसका परिणाम हुआ
कि समाज में अशिक्षा, अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच का निचले तब़कों में बोल-बाला
बना हुआ है। जिसकी वज़ह से लड़कियाँ अशिक्षित या अर्धशिक्षित बने रहने के लिए अभिशप्त हैं। घर, परिवार , समाज पिछे बना हुआ है।
कहने का तात्पर्य
यह है कि अगर आगे
बढ़ना है तो अपने घर की लड़की को आप आगे बढ़ाएँ। इज्जत की ओढ़नी ओढ़ाकर कब तक
संताप और त्रास की जिंदगी जीते रहेंगे। लड़की पढ़ाओ, देश बनाओ।
कृते: एस के यादव गोवन
दिनांक: 17/12/2013