मज़हब का धंधा

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, हम मंदिर जाना छोड़ दे

तू मस्जिद जाता रहेगा तो, मंदिर चल चला आएगा।

जब मंदिर चढ़ कर आएगा, तुझको मार भगाएगा
तू मस्जिद जाना छोड़ दे, हम मंदिर जाना छोड़ दे।

जब तेरी संख्या बढ़ जाएगी, तू मंदिर विनष्ट कर जाएगा
मंदिर मस्जिद धर्म का धंधा, हम नहीं अपनाएंगे।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

न हिंदू होगा न मुस्लिम होगा, मनुष्यता के इंसान बने
प्रेम मोहब्बत से जीना सीखो, रोटी बेटी से जुड़ जाओ।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

सब का मालिक एक ही है, यह तू भी जाने मैं भी जानू
मजहब की दुकान बंद कर, सच्चे की अलख जगाओ।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

सब मानव हैं एक समाना, सूरज चांद हवा और पानी
मिलकर कर बनो सब, एक भारतीय जैसे दूध और पानी।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

महिलाओं की वैज्ञानिक शिक्षा, सभ्यता की यही निशानी

                                                    
                      किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों की शिक्षा पर निर्भर होता है।

तेरा अल्लाह, मेरा ईश्वर, सबको एक ही जानो मानो।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

ढोंग ढकोसला ऊंच नीच, कुरान पुराण की डाँड़ी
कहें संतोष गोवन, कबीर दास की सच्ची बाणी।

तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं।

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर कविता समसामयिक वातावरण से ऊपजे प्रश्नों का समाधान देने वाली कविता है।

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