प्रकृति

 

   बहुत से कवियों ने प्रकृति पर सुंदर कविताएं लिखी हैं। किंतु एक युवा द्वार उसे कैसे देखा जाता है, कैसा महसूस किया जाता है......

    प्रकृति

पृथ्वी  की तो दृढ़ता अपनी

आकार स्थूल भार है देती

वृद्धि तू हर स्थान है करती

मुझमें बनकर केश अस्थि

मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!

 

 

द्रवता प्रदान कर जल अपनी

सावन करें समंदर तृप्ति

तुष्ट पुष्ट हमको कर देती

मुझमें लहू वीर्य बनी

मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!

 

 

अगन से ऊष्मा सूर्य की

इक नव जान जीवन में डाली

भर दें तन मन में स्फूर्ति

विलीन है मेरे सर्वस्व भरी

मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!

 

 

वायु की वो अपनी गति

ले आएं सुंदर ऋतु सारी

तुमसे ही चले मेरी गतिविधि

संचालक भी , प्रेरक तुम ही

मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!

 

आकाश है इतना विशाल कि

तू देता रिक्त स्थान काफी

अदृश्य बन दिखती है छवि

मेरे भीतर की चलन गति

मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!

 

ब्रह्म ज्ञान है ज्ञान जीव की

ज़िक्र करते वेदों की वाणी

पाठ पढ़ाकर पंचतत्व की

दर्शा दिया परिचय मेरा कि

 मैं हूं अंश तेरा, प्रकृति!


नाम: सी. नेहा

भूतपूर्व जनवि छात्रा

 https://youtu.be/Iko1kF9KKUc 

उक्त लिंक से सुनें   यह कविता कुछ कहती है-

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