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आज बहुत दिनों के बाद

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आज बहुत दिनों के बाद रविवार को बैठा हँ अपने क्वार्टर के बाहर, दुनिया से अकेला एक ऐसे बिहड़ जगह पर जहां कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं आता, दूर दराज तक जंगल ही जंगल है, संपर्क का लैंडलाइन का सहारा है, बस बीएसएनल भाई का सहारा है, न जीवो न एअरटेल, न कोई और नेटवर्क सारे सिम बेकार पड़े बंद हो गए। कोई कूरियर सर्विस नहीं, बस पोस्ट ऑफिस का सहारा है, इस मनोरम जंगल में शहर से दूर सरकारी सेवा का आनंद ही अनोखा है, बस रिटायरमेंट के बाद, पेंशन का न होना ही बहुत बड़ा धोखा है। देख कर लोगों का भविष्य और अपना मन में डर सा लगता है, निजीकरण की यह फायदेमंद भूख क्या जनता के साथ धोखा है। आसियाना

मोहिनी

"मोहिनी” वह बहुत सुंदर थी। आईसीआईसीआई बैंक के काउंटर पर पैसा जमा करती थी। पहले दिन उसने पैसा जमा करने में मेरी मदद की, मैं पहली बार आईसीआईसीआई बैंक में पैसा जमा करने गया था। मैं वहां पर कैश जमा करने की पर्ची खोज रहा था। उसने कहा पेपरलेस जमा होता है। मैंने उसको अपनी मोबाइल दे दी, बैंक एप को ऑन कर दिया और उसने एमाउंट पूछा और अपनी कोमल अंगुलियों से मोबाइल पकड़े हुए मेरे हाथों को स्पर्श करते हुए पेपरलेस की पर्ची भर दी। मैंने उसे 50000 का कैश दिया और तुरंत एक मिनट के अंदर वह हमारे अकाउंट में दिखने लगा। अमाउंट जमा हो जाने के पश्चात ही मुझे उसके हाथों के कोमल स्पर्श की अनुभूति हुई। उसके पहले मेरे अंदर एक भय था कि कहीं वह अकाउंट से कोई छेड़छाड़ न कर दे। उसकी कोमल अनुभूतियां मेरे जेहन में कहीं न कहीं अपनी छाप छोड़ दी, किंतु मैं उसे अनुभूत नहीं कर पा रहा था।  किंतु आज दूसरा हफ्ता था और मैं फिर लगभग 40,000 का अमाउंट जमा करने के लिए वहीं गया। किंतु आज काउंटर पर वह मुस्कुराता हुआ गोरा प्यारा चेहरा नहीं था। मुझे आज उस तरह से मुस्कुराते हुए स्वागत और सहायता करने वाली अनुभूति महसूस नहीं हुई। मैंन

लोक में भनभनाहट

  दोस्तों, बच्चों को विद्यालयों में नाटिका प्रस्तुत करने के लिए लिखी गई है। विद्यार्थियों द्वारा इसका मंचन किया जा चुका है। इस लघु एकांकी का आप भी रस लें............                    लोक में भनभनाहट                     दृश्य-1 ( पर्दे के पीछे से समूह गान गूँजता है. ) आओ प्यारे आओ, यह देश हमारा और तुम्हारा आओ प्यारे आओ, गाँधीजी ने लाई आजादी लोकतंत्र है इसकी ज़ान, आओ प्यारे आओ स्वतंत्रता के नवयुग में, आओ करे पदार्पण जन-जन का कल्याण हो सबको मिले अजादी राष्ट्रप्रगति तब होगी, जब सभी बने सहभागी आओ प्यारे आओ, जन-जन को मिले आजादी ( पाँच लोग मंच पर बारी बारी से अपना परिचय देते हैं.) विनायक गाँवकर: मेरा गाँव यहाँ से 60 किलोमीटर दूर सांगेय तालुका में पड़ता है. कोंकणी मेरी   मातृभाष है, हिंदी बिना पढ़े ही सीखी, अंग्रेजी का करता हूँ रट्टा, फिर भी नही हो पाया पक्का, इसी लिए खाता हूँ धक्का बताओ अब क्या करें ? जार्ज एंटनी: हेल्लो! कालिकट इज़ माइ बर्थ प्लेस, मलयालम इज़ माइ नेटिव लैंग्वेज़ बट आल आर    रबिस़, वनली इंग्लिस इज़ इंपोर्टेंट फॉर अस, बिकॉज़ इट्स गिव्स ज़ॉब

हिंदी पाठ्यक्रम (Hindi Course)

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दोस्तों आज मैं आप को हिंदी पठन-पाठन से जुड़ी जानकारी देंगे। क्योंकि बहुत लोग उसके बारे में जानना चाहते हैं। भारत में हिंदी के दो पाठ्यक्रम चलते हैं- 1. ऐक्षिक हिंदी पाठ्यक्रम (Elective Hindi Course) 2. आधार हिंदी पाठ्यक्रम (Core Hindi Course) उक्त दोनों पाठ्यक्रम (कोर्स) केंद्रिय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) जिसे अंग्रेजी में Central Board of Secondary Education (CBSE), जो "शिक्षा मंत्रालय" भारत सरकार के अंतर्गत देश की परीक्षाओं और पाठ्यक्रम बनाने को निर्धारित करने तथा संपन्न करने का कार्य करता है। इसकी अधिकारिक साइट है-  https://cbse.nic.in/ ऊपर वर्णित दोनों पाठ्यक्रम पूर्ण रूप से सीबीएससी द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। उक्त दोनों में से कोई भी पाठ्यक्रम पढ़ने वाले विद्यार्थी को हिंदी विषय से पढ़ा विद्यार्थी माना जाता है। वह कहीं पर इस योग्यता को हिंदी की योग्या के लिए प्रस्तुत कर सकता है। आप सबकी जानकारी के लिए यहां बाताना आवश्यक है कि भारत में ऐक्षिक (इलेक्टिव) और आधार (कोर) दो प्रकार के पाठ्यक्रम माध्यमिक से स्नातक शिक्षा तक चलते है। किंतु स्नातक या उच्च शिक्षा में हिंदी

दक्षिण की रेल यात्रा

आज सुबह ग्यारह बजे के लगभग त्रिवेंद्रम सेंट्रल राजधानी एक्स्प्रेस वातानुकूलित कोच में सीटों से ज्यादा लोग सवार थे। 12 दिसंबर, 2019 की ठंडी ने मानो सीएए और एनआरसी के विरोध में उठी गर्मी को ठंडा कर रही थी। कोच में सवार लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के बोली, पहनावा, खान-पान वाले लोग थे। जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी थे। गाड़ी धीरे-धीरे निजामुद्दीन स्टेशन से केरल के लिए निकल चुकी थी। मन में यही सोच रहा था कि उत्तर से दक्षिण तक के भारत का दर्शन होगा। मन में लग रहा था कि शयनयान कोच शायद भारत को समझने के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। हमारे प्रकोष्ठ में आठ सीटें हैं, जिनमें एक मुस्लिम परिवार और छः हिंदू परिवार हैं। हिंदू लगभग खामोश हैं किंतु सभी मुसलमान आपस में पूरे कोच में दुआ-सलाम और बातचीत कर रहे हैं। उत्सुकता बस मैंने मुस्लिम परिवार से पूछा, “क्या ये लोग आप के रिश्तेदार हैं? किसी शादी-विवाह में आप लोग जा रहे हैं? बुरकाधारी महिला, जो अब तक बुरका उतार के रख दी थी, बोली- नहीं साहब हम लोग केरल के हैं और वे लोग हमारे परिचय के नहीं हैं। मैंने पूछा, “देखने से पता नहीं चल