संदेश

“हिंदी देश की स्वाभाविक संपर्क भाषा है”

        भारत देश के विकास के बारे में लोगों के अनेक विचार है. जितने लोग हैं सभी अपनी सुविधा के अनुसार देश को सुधारना चाहते है. इस देश का पढ़ा लिखा संपन्न वर्ग है, जो संपूर्ण देश में ऊंचे-ऊंचे पदों का स्वामी बना हुआ है. वह उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, गलत और सही हर के साथ खड़ा है. वह देश का की जनसंख्या का 10-12 प्रतिशत ही है. वह बहुत जागरूक है, उसे मालूम है उसका हित और स्वार्थ कहाँ है? वह स्वार्थ के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है. वह अपना रूतबा और रोब बनाए रखने के लिए हर गोरख-धंधे में संलिप्त है. विद्यालयों में दूसरों के बच्चों पर नियंत्रण रखने के लिए शक्ति करता है. खुद के बच्चों को नकल या अकल से अच्छा अंक दिलवाता है. अपने से बड़े या शक्तिशाली के लिए सब कुछ गलत करता है और उसे नियम व कानून से सही भी सिद्ध करता है. जिस पद पर है उस पद के उद्श्यों का कभी पालन नहीं करता. जब कोई आम आदमी हिम्मत कर के उससे सही, सच और मानवता की बात कहने की हिम्मत जुटाता है, तब वह कानून की व्याख्या अंग्रेजी में करके उसे धमकाता है. आम-आदमी को अंग्रेजी और कानून का ज्ञान नहीं होता है. इसलिए उसे कुछ समझ में नहीं आत

तू मेरी

उमा तुम कितनी प्यारी हो दिल में जीने की उमंग जो भरती हर रस पर तुम किताना भारी हो सब लोग समझते हैं जिसको रस वे सब कितने अज्ञानी हैं बेरस के पीछे दौड़ रहे रसवंती घर में बेगानी है धोओ पोछो साफ करो रसवंती घर की रानी है उजस श्रोत जल  का हो तुम घर बार सींच कर सुफल किया हर पल रस भरती रहती हो नदियों में धारा जैसी रहती खुद बहती हो घर सजती हो हम सब का संचार हो तुम तुम कोई और नहीं मेरे दिल का प्यार हो उमा तुम कितनी प्यारी हो अपने घर की रानी हो.                                      प्रेम 09/10/11 उमा तुम कितनी प्यारी हो दिल में जीने की उमंग जो भरती हर रस पर तुम किताना भारी हो सब लोग समझते हैं जिसको रस वे सब कितने अज्ञानी हैं बेरस के पीछे दौड़ रहे रसवंती घर में बेगानी है धोओ पोछो साफ करो रसवंती घर की रानी है उजस श्रोत जल  का हो तुम घर बार सींच कर सुफल किया हर पल रस भरती रहती हो नदियों में धारा जैसी रहती खुद बहती हो घर सजती हो हम सब का संचार हो तुम तुम कोई और नहीं मेरे दिल का प्यार हो उमा तुम क

बहुत दिनों के बाद

आज बहुत दिनों के बाद मैंने कुछ लिखने के लिए ब्लाग खोला पर अधिक नहीं लिख सका कल देखेंगे क्या लिखा जाय.

आह ! कितना सुंदर है यह पालोलेम बीच

धरती और समुंदर का संगम कितना मन मोहक पालोलेम बीच पर हजारों मीटर श्वेत बालू का रेला जिनपर नीली लहरें करती खेला श्वेत और नीलें रंगों का मेला देखने के लिए आते हैं परिंदे विदेशी देशी प्रवासी चहकते हैं इस पर नहाना और खाना, मजा मार कर जाना हजारों पर्यटकों का रोज-रोज आना  नहीं जान पायें क्या है पशाना  मगर हैं यहाँ अद्भुत की शांति मनमोह लेता है अपना बनाता सन, सैंड,सी के अलावा भी कुछ है अद्भुत शांति, मखमली शांति, स्निग्ध मदहोशी रत्नाकर में डूबती संध्या, ऊँघते तारे पानी में सिंधु पर बीछी रात की कालिमा पर दौड़ती मछुआरों की टिमटिमाती छोटी, छोटी नावों से लगता है जिंदगी कैसी भी हो पर चलना है जैसे पालोलेम किनारे रात को चलती हैं कोलियों की नावें, जीवन का पथ दिखाती उन रातों में भी पालोलेम किनारे मस्त,व्यस्त,पस्त लहरें, श्वेत रेत की ओर।   

THINK BROADLY AND WRITE SELFLESSLY ??????..........

Hindi is spoken by 90% Young India and understands by most common people but it is not a medium of education, Administration, Justice and jobs. Is it not a cheating of country and country man? Give reasonable view.

हिंदी के बढ़ते कदम : नाटिका

                   लोक की भनभनाहट                    दृश्य-1 ( पर्दे के पीछे से समूह गान गूँजता है. ) आओ प्यारे आओ, यह देश हमारा और तुम्हारा आओ प्यारे आओ, गाँधीजी ने लाई आजादी लोकतंत्र है इसकी ज़ान, आओ प्यारे आओ स्वतंत्रता के नवयुग में, आओ करे पदार्पण जन-जन का कल्याण हो सबको मिले अजादी राष्ट्रप्रगति तब होगी, जब सभी बने सहभागी आओ प्यारे आओ, जन-जन को मिले आजादी ( पाँच लोग मंच पर बारी बारी से अपना परिचय देते हैं.) विनायक गाँवकर: मेरा गाँव यहाँ से 60 किलोमीटर दूर सांगेय तालुका में पड़ता है. कोंकणी मेरी   मातृभाष है, हिंदी बिना पढ़े ही सीखी, अंग्रेजी का करता हूँ रट्टा, फिर भी नही हो पाया पक्का, इसी लिए खाता हूँ धक्का बताओ अब क्या करें ? जार्ज एंटनी: हेल्लो! कालिकट इज़ माइ बर्थ प्लेस, मलयालम इज़ माइ नेटिव लैंग्वेज़ बट आल आर   रबिस़, वनली इंग्लिस इज़ इंपोर्टेंट फॉर अस, बिकॉज़ इट्स गिव्स ज़ॉब आल ओवर द       वर्ल्ड. एज़ आल यू न्वो मैक्सिम लेबर प्रॉवाइड टू ग़ल्फ बाइ अस. दीक्षिता मराठे: माझे घर कोल्हापूर मध्ये आहे. मराठी भाषेशी मला प्रेम आहे, परंतु तेवढाच प्रेम हिंदी भाषेशी आहे. क्योंकि हिंदी

जरुरत

कभी कभी आत्मा को इतना दर्द होता है उसको बया करना खुद पे शर्म  होता है, वो हमें सिखाते आधुनिकता की शैली, जिसमें होता है जिस्म बेच कर जीने की कला अपनी ही जनता को चूना लगाने की कला एक इंच जमीन बढा न सके, पर आजदी के नाम पर बेच देने की कला  वे पढ़वाते हैं आत्महीनता का पाठ जिसमें होता है नौकरी पाने की कला बडे बडे आईआईटी और आईआईएम खोलो गए हैं, शायद वहाँ सिखाया जाता है .... देश को खाजाने की सबसे अच्छी कला क्यों नहीं आजतक निकला इन श्रेष्ठ संस्थानों में कोई ऐसा जो समझा हो इस देश की आवश्यकता ???   Publish Post