प्यारा कानकोण


नदियों के किनारे लहरों की गूंज
पर्वतों के रंग में दिखे श्यामल कुंज
मोहक है जो यहां न्यारा
वह है कानकोण प्यारा।

गूंज उठता है आसमान, बदल जाता है नजारा
पावस ऋतु में, पंछियों के झुंड में
खिलता है श्याम सा सार
वह है कानकोण प्यारा।

गरमी में तपती धूप
करे सबको हैरान
सावन के आगमन का, जहां करे रत्नाकर एलान
वह है कानकोण प्यारा।

ठंडी लाती है अपने संग जहां
क्रिसमस की धमाल मस्ती
मनचाही खुंशियां, रंग विरंगी संसार
वह है कानकोण प्यारा।
नारियल काजू से भरा
यह जहां है बेमिसाल
नेति नेति से बना रिश्ता अप्रकट
वह है कानकोण प्यारा।

आओ देखो, घूमों
यह सुंदर जहां निराला
सुशील मनमोहक, प्रकृति की गोद का प्यारा
वह है कानकोण हमारा।  रचित: संतोष कुमार यादव दिनांक:25/12/2014


           ***** 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अहीर शब्द की उत्पत्ति और उसका अर्थ

प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य रचना : युग की गंगा

हिंदी पखवाड़ा प्रतियोगिताओं के लिए प्रमाण-पत्र