सारा की मुहब्बत
कहानी
गोवा के काणको ण
तालुका में एक परिवार रहता था, जिसमें तीन
सदस्य थे। सबीह अली उसकी बेगम सारा और
सारा की बहन सबी। सारा और सबी दोनों
बहनों की पढ़ाई लिखाई नवोदय में होने के कारण वे खुले बिचारों तथा उच्च संस्कारों से संपन्न थीं। सबीह बंगलूरु से
तालीम लिया है। सबीह और सारा के शादी हुए अभी एक महीना ही हुआ है। सबीह सारा तथा
साली सबी के साथ रहता है। सारा को पशु-पक्षियों को पालन े का बहुत शौक है, उसने बिल्ली, मुर्गा, मुर्गी और दो कबूतर पाल रखे
हैं। वे अहाते में बाड़ा बना रखे हैं जिसमें नीचे मुर्गा, मुर्गी रहते हैं और ऊपर कबूतर ने बसेरा
बनाया है।
सारा सबेरे और शाम आकर इन सबको खाना-पानी खिलाती-पिलाती है और
उनके साथ अपना कुछ
समय बिताती है। एक
दिन उसने देखा कि
कबूतर कबूतरी एक दूसरे को बहुत
प्यार करते हैं, साथ - साथ गूंटूरगूं करते हैं, साथ में खाते हैं, साथ में पीते हैं,
एक ही साथ खेलते और नाचते हैं। कबूतरों और उनके प्रेम को देखकर सारा को बहुत
मजा आता वह अपनी
बहन को इस पवित्र प्रेम को बताती और दिखाती। सारा अपने शौहर को बहुत मुहब्बत करती।
वह सबीह को सदा
साथ रखना चाहती।
पक्षियों को खिलाने-पिलाने में सबीह सारा के साथ रहता। सारा सबीह खास कर कबूतरों
के प्रेम-प्रलाप देखते और एक दूसरे को देखकर मुस्कराते और बाहों में भर लेते।
लेकिन एक दिन ऐसा हुआ जिससे सार ा को बहुत दुख हुआ। न जान े क्यों उस दिन बल्ली खिसिया
गई और कबूतरी को
गले से दबा कर
तोड़ दिया। सारा, सब ाह
दोनों बचाने की
बहुत कोश िश किए किंतु कबूतरी बच नहीं पाई। सारा को बहुत दुख हुआ,
वह कई दिनों तक ठीक से खाना खा न सकी। सारा देखती है कि
कबूतरी के बिना कबूतर बोलता नहीं, न चारा खात ा है, सदैव
गम गीन बन कर बसेरे
में पड़ा रहता
है। सारा, सबीह को कबूतर की दशा
को बताती और सबीह भी
सारा के साथ दुखी हो कर कबूतर का साथ देता। अचानक एक सप्ताह भी नहीं बिता था कि इतवार की सुबह
कबूतर मरा हुआ
बसेरे में पड़ा था। सारा बहुत दुखी थी, सबीह उस समझता कि दुख मत करो खुदा को यही मंजूर था।
किंतु सारा का दुख कम नहीं होता। उसने सबीह से कहा, “सबीह! कबूतरी के गम में कबूतर
अपनी जान दे दिया, पशु-पक्षी किताना सच्चा
प्यार करते हैं। सबीह ने कहा. “ मैं भी तुम्हें जान से ज्याद मुहब्बत करता हूँ,
मेरी जान। सबीह के इन्हीं शब्दों को सुनने के लिए मानो सारा तरस रही थी। वह गदगद हो गई और शौहर के बाहों में समा
गई। जीजी जीजा के प्यार को देख कर सबी को इन्तहा खुश ी
होती और वह उनके आपसी
मुहब्बत से बहुत खुश और संतुष्ट
रहती है।
सबी रात भर रोती रही और अपने गुस्से को पीती रही तथा मन में यह धारण मजबूत करती रही कि पूरी जिंदगी
कुंवारी रहेगी किंतु
इस धोखे बाज के
साथ कभी शादी नहीं
करेगी। रातभर सबी रोती रही, अजान की आवज से थोड़ा मन से भय कम हुआ। वह घर से निकली और कॉलेज चली आई।
दस वर्षों बात वह अपने पति महेश गांवकर के साथ अपनी जीजी का घर देखने गई तो वहाँ उसे दो और ते और आठ लड़के, लड़कियों का भरा पूरा बसेरा मिलता है। सबीह जिंदा थे जीजी के लिए नहीं बल्कि जान दे दे कर मरने के लिए। सबी
बिना कुछ पूछे उस
धोखे बाज को जीजी का घर दे कर चली गई।
संतोष कुमार यादव 01, जनवरी, रचित : 2015
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