बोर्डिंग स्कूल का पहला दिन

आज मेरा पहला दिन है। मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं न केवल अपने सपने को सफल होता देख रही हूँ। बल्कि आज मैं अपने पापा की नजर में एक होनहार और सबसे अच्छी बेटी बन गई हूँ। मुझे नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास करने की उतनी खुशी नहीं है जितनी की मेरे परिवार को है। शायद मेरे पालकों को मेरी सफलता में ही खुशी मिलती है। छोड़ो...... इन ... बातों को.......। ऐसा ही मैं सोच रही थी जब नवोदय विद्याल में पढ़ने हेतु पहली बार आई थी।
भी छः में आए लड़के लड़कियाँ रो रहे थे किंतु मुझे ज्यादा गम नहीं था। रात को सदनाध्यापिका ने हम सभी छठवीं के लड़कियों को बेड दिए और सदन में रहने के नियम-कानू बताए। बहुत अच्छी थीं मैडम। सभी बच्चों की बातें बहुत प्यार से सुनतीं और तुरंत हमारी कोई भी उठी जिज्ञासा शांत कर देतीं, हमारी परेशानी का समाधान कर देतीं। सदनाध्यापिका ने कहा- पढ़ाई मजे से करो, खेलने में मजे करो, रहने में मजा करो, खुब मजा करो! पर ध्यान रहे, नियमों का पालन करना और दूसरों को कष्ट मत देना। अंजली बोली बस! इतना ही, मैंने सुना था बहुत कठिन होता है हॉस्टलों की जिंदगी। पर कहाँ से सुना था, बेटी! मैडम बोली। किंतु यहाँ कोई कष्ट नहीं है। धन्यवाद मैडम।
उस रात को हमें बहुत सुंदर सुंदर सपने आए। मेरा मन अध्यापकों की कक्षा पढ़ने का इंतजार कर रहा था। मैं बेचैन थी कि कब सुबह हो और मैं विद्यालय जाऊँ। मुझे मम्मी-पापा, भाई-बहन किसी की भी याद नहीं आ रही थी, जबकि बहुत सी लड़कियाँ रोते-रोते सो गई थीं।
दूसरे दिन की सुबह सातवीं के लड़कियों द्वारा जगाए जाने से हुई। वे पी.टी. से वापस आ गई थीं और छठवीं की सभी लड़कियों को जगाया। किसी तरह अनिच्छा से सवा छः बजे हम सभी उठ गए। किंतु शौचालय और स्नानघर की और दौड़े, सभी टायलेट फुल, दो-तीन सातवीं-आठवीं की लड़कियाँ प्रतीक्षा कर रही थीं। हमारी हिम्मत नहीं थी कुछ कहने कि..........। हमें मम्मी की याद आने लगी, हममें से कुछ ब्रश करने लगीं, कुछ बिना टायलेट गए स्कूल जाने की तैयारी करने लगीं। मेरा भी मन अब उचट रहा था। किंतु पढ़ाई और स्कूल के बारे में बहुत कुछ सुना था। सबसे ज्याद खुशी तब हुई थी, जब पापा ने नवोदय के बेबसाइट पर मेरा नाम दिखाया था। वैसे ही खुशी मैं इस स्कूल में फिर पाना चाहती थी। मेरी आत्मा में यह नवोदय विद्यालय दुनियाँ का स्वर्ग और उसमें पढ़ाने वाले शिक्षक देवता थे। मन से मम्मी फिर हट गईं और विद्यालय जाने की गुदगुदी होने लगी। सभी लड़कियों ने अपनी-अपनी ड्रेस पहनीं और विद्यालय के अकैडमिक खंड में पहुँचीं। हमें बहुत अच्छा लग रहा था। हमें एक सुंदर कक्षा में कक्षाध्यापक द्वारा बैठाया गया। उपस्थिति भरी गई और हम प्रार्थना सभा में उपस्थित हुए। मृदंग बज रहा था, उसकी ताल पर कदम ताल हम सभी कर रहे थे। मुझे लग रहा था, कहीं कुछ गलत न हो जाय.......पर सब ठीक हुआ। सावधान! विश्राम के बाद सुंदर प्रार्थना “हम नवयुग की नई भारती नई आरती” संपन्न हुई। मेरे मन में इस परम सुंदर कविता के कवि का नाम जानने की जिज्ञासा हुई। हमारे हिंदी अध्यापक ने हमें बताया कि यह कविता महान देशभक्त और राष्ट्रीय एकता के उन्नायक पंजाब के कवि डॉ. सुरेश चंद्र वात्स्यायन ने लिखा है। प्रार्थना सभा के अपने संबोधन में प्राचार्य श्री एस कन्नन ने हम सब का हार्दिक स्वागत किया, उनका संबोधन मानो हमारे सपने को साकार करने वाले सपने थे। हम सभी बहुत खुश हुए अपनी-अपनी कक्षा के लिए प्रस्थान किए।
सबसे पहले लाइब्रेरी सर ने लड़कियों को किताब देने के लिए बुलाया, जबकि लड़के पहले दौड़ कर पहुँच गए। उन्हें वापस भेज दिया गया तथा लड़कियों को पहले आने को कहा गया। हमें बहुत खुश हुई लगा यह कितना सुंदर नवोदय है, जहाँ आज मुझे लड़की होने पर गौरव हो रहा है, क्योंकि लड़कियों को सबसे पहले किताब दी जा रही थी। हमारी इच्छा थी कि हमें नई-नई सुंदर-सुंदर पुस्तकें मिलेंगी, क्योंकि नई पुस्तकों की महक हमें खीचती है, हमें नई किताब पढ़ने में बहुत आनंद आता है। जब कभी पापा नई किताब लाते उसे पूरा पढ़े बिना मुझे शांति नहीं मिलती थी। यह क्या? लाइब्रेरी सर तो पुरानी पुस्तके दे रहे हैं। मन खिन्न हो गया। सारे सपने उड़ गए। फिर सोचा की इन्हें अच्छे से आवरण चढ़ाकर सुंदर बना देंगे, मन को धीरज धराया। बाद में भंडार से नया गद्दा, नई बिछावन, नई चादर और ढेर सारी नई-नई नोटबुक मिली। मन चंगा हो गया। सभी छठीं के बच्चे खुश थे। बहुत नया नया सामान मिल रहा था बहुत मजा आ रहा था, हमें पता नहीं था क्या क्या मिलेगा। टुथ-ब्रश, पेस्ट, साबुन, तेल, मोजा, जूता और पीटी शर्ट सब एक साथ। कितना सुंदर था वह दिन! हम लड़कियाँ परियों की तरह स्वर्ग में तैर रही थीं। लग रहा था यह वही जगह है जिसे हमें तलाश थी। सुबह अच्छा नास्ता, दोपहर का खाना, शाम को जलपान और रात्रिभोज आदि सब कुछ प्रीतिकर और आनंदित कर देने वाला था। अगर कुछ खटक थी तो उसे सामंजस्य के गुण विकसित करने की बात सोच कर खुश हो गए थे।
हम सभी लड़कियाँ खुब खुश थीं। सभी विषयों के अध्यापकों ने बहुत अच्छा पढ़ाया था। हमें लग रहा था कि अब हमें हमारे सभी सवालों के जबाब आसानी से मिल जाया करेंगे। यह सोच कर मन-मयूर बहुत मग्न था, सभी लड़के-लड़कियाँ खुश थे। हम पूरी दुनियाँ को जानने के सपने देखने लगे थे। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, कोंकणी और कुछ तमिल, मलयाली तेलगु तथा कन्नड़ भाषी भी थे। उनकी बोली सुनने में बड़ा मजा आता था, किंतु हम उन्हें बोलने को नहीं कह सकते थे। पर हमारे मन में उनकी बोली सुनने की इच्छा छिपी रहती थी। एक लड़की कन्नड़ भाषी हमारे सदन में हमारे साथ थी। उसको अंग्रेजी ठीक से नहीं आती थी। वह केवल हिंदी में बात करती थी, कुछ ठीक से नहीं बोल पाती थी। शायद इस लिए बहुत उदास थी, किंतु जब हमने उससे कन्नड़ में बोलने को कहा, तो वह बहुत खुश हो कर कुछ बोल रही थी। हमें तो समझ में नहीं आया किंतु उसने बताया कि वह कह रही थी कि “हम लोग बहुत अच्छी सखी हैं।”
सोने से पहले हमने सातवीं कक्षा वालों से पूछा इस विद्यालय में क्या क्या है? उसने हमें बताया कंप्यूटर लैब, संगीत, चित्रकला तथा विज्ञान की बड़ी-बड़ी लैब हैं। सभी कक्ष में हरे हरे पट्ट लगे हैं जिन पर लिखने से सभी छात्रों को दिखाई पड़ता है। यह सब जानकर हमारे मन में इतनी आशा भर गई कि हम एक साथ गायन, नृत्य, कला और विज्ञान के महारथी बनने की कल्पना से शावक मृदुल सपनों सा झूम उठे। यद्यपि कुछ को फिर भी घर की याद साता रही थी। हमें सबसे सुखकर तब लगा था जब हम लोग इतनी सखियों के साथ खेलने के लिए मैदान में गए थे। पीटी मैडम ने सबकी खेल संबंधी रुचि पूछी। किसी ने खो-खो, किसी ने बैटमिंटन, किसी ने योग में अपनी रुचि बताई। किंतु मैंने टेबल टेनिस में अपनी रुचि दिखाई। हम दौड़ते हुए अपने दो सखियों के साथ टेबल-टेनिस खेलने के लिए गए। किंतु वहाँ तो सीनियर पहले से ही जमे थे। हम अगले दिन खेलने का स्वप्न पाल आगे चले गए। खुब दौड़ा, खुब घूमा जैसे पक्षी नीले नभ में सैर करती है वैसे हम नवोदय प्रांगण में दौड़-भाग कर मुग्ध हो गए थे। हम में से कुछ मन ही मन पीटी उषा और सानिया नेहवाल बनने का मन बना चुके थे।
साढ़े छः बजे संध्याध्ययन कक्षाएँ लगीं। जहाँ हमें गृहकार्य करने और स्वपाठ करने का समय मिलता है। किंतु हम छठवीं के लड़कियाँ थक चुकी थीं। मन विस्तर पर जानको हो रहा था। कुछ देर में घंटी बजी सभी लड़कियाँ दौड़ते हुए अपने सदन में आए और रात्रिभोज के लिए भोजनालय में पहुँच गए। वहाँ बड़ी-सी पँक्तियों में खड़े हो कर प्रतीक्षा किए आठ बीस पर हमारी बारी आई और भोजन लेने के बाद फिर डाइनिंग टेबल पर सभी विद्यार्थियों के भोजन परोस जाने तक इंतजार करना पड़ा। भोजन प्रार्थना के बाद हम रात्रिभोज किए और सीधे अपने सदन के लिए दौड़े। हम सब थक कर चूर हो गए थे, नींद बहुत आ रही थी। सदन कैप्टन ने बताया की सदनाध्यापिका की बैठक है। किंतु हमारी आँखे स्वयं बंद हो जा रही थीं। उपस्थिति भरने के उपरांत अध्यापिका ने हमसे हाल-चाल पूछा तथा सबको सोने के लिए भेज दिया।
पूरा दिवस अति सुंदर था, वह मेरे जीवन के सपने के समान उज्ज्वल, निर्मल, सशक्त और सुखदायी था। हम खुश थे, नव उदय के साथ, नव नवोदय बनने के लिए। हम सभी को यह नवोदय बहुत भा रहा था। जैसा नवोदय के बारे में सुना था वैसा ही नवोदय हमें मिला था। सपनों-सा, सपनों का, नव उदय के लिए तत्पर हमारा नवोदय और हम भरे थे नई उमंगों, नई तरंगों से, हमी नवोदय हो के भाव से, नए सबेरा को आँखों में सजाए न जाने कब सो गए, विहान के लिए।   
संतोष कुमार यादव रचित: 2012

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