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बोर्डिंग स्कूल का पहला दिन

आज मेरा पहला दिन है। मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं न केवल अपने सपने को सफल होता देख रही हूँ। बल्कि आज मैं अपने पापा की नजर में एक होनहार और सबसे अच्छी बेटी बन गई हूँ। मुझे नवो दय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास करने की उतनी खुशी नहीं है जितनी की मेरे परिवार को है। शायद मेरे पालकों को मेरी सफलता में ही खुशी मिलती है। छोड़ो...... इन ... बातों को.......। ऐसा ही मैं सोच रही थी जब नवोदय विद्याल में पढ़ने हेतु पहली बार आई थी। स भी छः में आए लड़के लड़कियाँ रो रहे थे किंतु मुझे ज्यादा गम नहीं था। रात को सदना ध्यापिका ने हम सभी छठवीं के लड़कियों को बेड दिए और सदन में रहने के नियम- कानू न बताए। बहुत अच्छी थीं मैडम। सभी बच्चों की बातें बहुत प्यार से सुनतीं और तुरंत हमारी कोई भी उठी जिज्ञासा शांत कर देतीं, हमारी परेशानी का समाधान कर देतीं। सदनाध्यापिका ने कहा- पढ़ाई मजे से करो, खेलने में मजे करो, रहने में मजा करो, खुब मजा करो! पर ध्यान रहे, नियमों का पालन करना और दूसरों को कष्ट मत देना। अंजली बोली बस! इतना ही, मैंने सुना था बहुत कठिन होता है हॉस्टलों

सारा की मुहब्बत

कहानी                                                              गोवा के काण को ण तालुका में एक परिवार रहता था, जिसमें तीन सदस्य थे। सबीह अली उसकी बेगम सारा और सारा की बहन सबी। सारा और सबी दोनों बहनों की पढ़ाई लिखाई नवोदय में होने के कारण वे खुले बिचारों तथा उच्च संस्कारों से संपन्न थीं। सबीह बंगलूरु से तालीम लिया है। सबीह और सारा के शादी हुए अभी एक महीना ही हुआ है। सबीह सारा तथा साली सबी के साथ रहता है। सारा को पशु-पक्षियों को पालन े का बहुत शौक है, उसने बिल्ली, मुर्गा, मुर्गी और दो कबूतर पाल रखे हैं। वे अहाते में बाड़ा बना रखे हैं जिसमें नीचे मुर्गा, मुर्गी रहते हैं और ऊपर कबूतर ने बसेरा बनाया है। सारा सबेरे और शाम आ कर इन सब को खाना-पानी खिलाती-पिलाती है और उनके साथ अपना कुछ समय बिताती है। एक दिन उसने देखा कि कबूतर कबूतरी एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं, साथ - साथ गूंटूरगूं करते हैं, साथ में खाते हैं, साथ में पीते हैं, एक ही साथ खेलते और नाचते हैं। कबूतरों और उनके प्रेम को देखकर सारा को बहुत मजा आता वह अपनी बहन को इस पवित्र प्रेम को बताती और दिखा

प्यारा कानकोण

नदियों के किनारे लहरों की गूंज पर्वतों के रंग में दिखे श्यामल कुंज मोहक है जो यहां न्यारा वह है कानकोण प्यारा। गूंज उठता है आसमान, बदल जाता है नजारा पावस ऋतु में, पंछियों के झुंड में खिलता है श्याम सा सार ा वह है कानकोण प्यारा। गरमी में तपती धूप करे सबको हैरान सावन के आगमन का, जहां करे रत्नाकर एलान वह है कानकोण प्यारा। ठंडी लाती है अपने संग जहां क्रिसमस की धमाल मस्ती मनचाही खुंशियां, रंग विरंगी संसार वह है कानकोण प्यारा। नारियल काजू से भरा यह जहां है बेमिसाल नेति नेति से बना रिश्ता अप्रकट वह है कानकोण प्यारा। आओ देखो, घूमों यह सुंदर जहां निराला सुशील मनमोहक, प्रकृति की गोद का प्यारा वह है कानकोण हमारा।  रचित: संतोष कुमार यादव दिनांक:25/12/2014            ***** 

सुंदर गोवा

आज रात देखा एक सपना गोवा हमारा बहुत सुंदर है। समुंदर के किनारे बसी छोटी सी नगरी जिसमें गाँव का रस शहर का सुख और महानगर की सुविधाएँ है। इसीलिए हम इसे इस देश का सुंदरतम प्रदेश कहते हैं। आओ चलें गोवा देखें उसकी शान मस्ती, रेत और लहरों का मस्ताना उतार - चढ़ाव बीचों और मंदिरों की शान गोवा है, इसलिए हम सबकी जान। 

मातृभाषा शिक्षण का माध्यम क्यों नहीं?

               मातृ भाषा का तात्पर्य उस भाषा से है जिसे पैदा होने के बाद बालक बोलता है। वह भाषा उसके परिवेश में प्रचलित भाषा होती है। वैज्ञानि को ं तथा शिक्षा विदों का विचार है कि प्राथमिक शिक्षा बच्चों को उनकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए। इससे बच्चों में पारिवारिक एवं सामाजिक संस्कार के साथ-साथ संकल्पनात्मक भाव एवं सोच पैदा होती है। जिसकी वज़ह से वे बच्चे उस भूमि और संस्कृति से आजीवन जुड़ जाते हैं। राष्ट्रभाष या राज भाषा वह भाषा होती है जो व्यापक पैमाने पर मातृभाषाओं तथा देश ी संस्कृति संस्कार को आगे बढ़ाती है। माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा यदि राष्ट्रभाषा में दी जाती है तो विद्यार्थियों में उस भूमि, संस्कृति तथा जनता के प्रति आजीवन प्रेम बना रहता है। राष्ट्रभाषा में शिक्षित विद्यार्थी दुनियाँ का ज्ञान, तकनीक और आर्थिक साधन-सामग्री अर्जित कर अपने देश एवं जाति के लिए निचोड़ता है। ऐ से में वह देश और वहाँ के नागरिक धन-सपमन्न एवं स्वाभिमान से युक्त होते हैं। अतः शिक्षा विदों एवं वैज्ञानिकों का वितार है कि माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा राष्ट्रभाषा में

हिंदी फोंट

गोवा और भारतीय संस्कृति

            गोवा का नाम आते ही लोगों के मन में एक ऐसे स्थान का बोध होता है जो विदेशी संस्कृति से अच्छादित, खुले विचारों से युक्त, सुरा और सुंदरियों से भरा, सुंदर संदर समुद्री तट वाला शहर है। किंतु यह बाह्य सोच गोवा इसके विपरीत प्राचीन भारतीय संस्कृति एक विशिष्ट केंद्र है। यहाँ जैसे मंदिरों की श्रेणियाँ देश के अन्य स्थानों पर कम ही देखने को मिलती है। सुंदर सुडौन मंदिर यहाँ के सांस्कृतिक गहराई को व्यक्त करते हैं। गोवा शब्द की व्युत्पत्ति:                 संप्रति मराठी-गोवा, कोंकणी- गोंय, अंग्रेजी- Goa (देवनागरी अनुवाद-गोअ/गोअा) कहते हैं। किंतु  Goa/गोअ का कोई अर्थ नहीं होता है। चूंकि पुर्तगीज सपसे पहले अपनी बस्की की स्थापना वेल्हा गाँव (Velha Goa) में बनाया। इसी वेल्हा गाँव में से वेल्हा पीछे छूट गया। गाँव को पुर्तगालियों ने गॉअ (Goa) उच्चारण किया और इसका नाम धीरे धीरे पुर्तगालियों के कारण अंग्रेजी अभिलेखों में गोवा हो गया। इस प्रकार कई गलत उच्चारण के नाम आप गोवा में देख सकते हैं जैसे- केपे - केपेम्, काणकोण- कानाकोना आदि। कहने का अर्थ जैसा पुर्तगालियों को उच्चारण आया वैसा उन्हो