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अनबूझी बातें

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 दोस्तों कोरोना के संकट काल में जीवन संघर्षों और समाज व शासन के अंतरद्वंद्व को व्यक्त करती हुई यह समसामयिक कविता बहुत कुछ कहती है। कवि की अनुभूति उस धरातल को व्यक्त करती है जहां पर सच्चा इंसान स्वयं परिस्थितियों की पहेली बन गया है......................  -----अनबूझी बातें-----    हम ठग रहे,या ठगे जा रहे हैं, यह अनबूझ पहेली, न समझ पा रहे हैं।   पथ और पथिक,  दोनों साथ-साथ चलते, थकता है कौन?  न समझ पा रहे हैं।   धरती के घूर्णन से, दिन रात होते, ढलता है सूरज, या दिन रात ढल रहे हैं।   धधकता है सूरज, तपती ज़मीं है, ज़लती ज़मीं या सूर्यदेव जल रहे हैं।   जलती शमां तो, परवाने आ के जलते, जलन है कहाँ पर, न समझ पा रहे हैं।   कलियोंकी मुस्कान पे, मंडराते भँवरे. छलता है कौन?  न समझ पा रहे हैं।   उभरते कवि: श्री आर यन यादव जवाहर नवोदय विद्यालय, तैयापुर, औरैया, उ.प्र.   मो. : 8840639096  

संघर्षी जीवन

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                                                                     संघर्षी जीवन चलना सीखा तुमने सड़कों पर, मैंने सीखा गलियारे में। तुम उजियारे में सोए हो, मैं सोया अँधियारे में। बन साधक साधनारत अब भी , लक्ष्य एक ही पाने को, इतनी कृपा करो प्रतिपालक, जीने दो मुझे उजियारे में। बचपन से लड़ना सीखा है, चक्रवात,तूफानों से। काँटों से अनुराग रहा और , भूखे,प्यासे इंसानों से। खुशनसीब ,जीवन कृतार्थ, गर कर पाऊँ मानव सेवा, यही लालसा, रहूँ दूर मैं, छलिया, कपटी इंसानों से। स्वाभिमान से जीने वाले , हमें भेदभाव स्वीकार नहीं। दोहरी चालें चलने वालों, छल छद्मता अंगीकार नहीं। पाखण्ड और सामंतवाद,  मन तक फैला आतंकवाद, पूरे समाज को निगल रहा, हमें दम्भवाद स्वीकार नहीं। नव युवा पढ़े ,स्वावलंबी बने, रोजगार मिले, खुशहाल रहे। भेदभाव रहित नवसमाज बने, नफरत, हिंसा से दूर रहे। कलुषित विचार,मन में विकार, और कदाचार न पनप सकें, समरसता,और जीवन ...

दक्षिण की रेल यात्रा

आज सुबह ग्यारह बजे के लगभग त्रिवेंद्रम सेंट्रल राजधानी एक्स्प्रेस वातानुकूलित कोच में सीटों से ज्यादा लोग सवार थे। 12 दिसंबर, 2019 की ठंडी ने मानो सीएए और एनआरसी के विरोध में उठी गर्मी को ठंडा कर रही थी। कोच में सवार लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के बोली, पहनावा, खान-पान वाले लोग थे। जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी थे। गाड़ी धीरे-धीरे निजामुद्दीन स्टेशन से केरल के लिए निकल चुकी थी। मन में यही सोच रहा था कि उत्तर से दक्षिण तक के भारत का दर्शन होगा। मन में लग रहा था कि शयनयान कोच शायद भारत को समझने के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। हमारे प्रकोष्ठ में आठ सीटें हैं, जिनमें एक मुस्लिम परिवार और छः हिंदू परिवार हैं। हिंदू लगभग खामोश हैं किंतु सभी मुसलमान आपस में पूरे कोच में दुआ-सलाम और बातचीत कर रहे हैं। उत्सुकता बस मैंने मुस्लिम परिवार से पूछा, “क्या ये लोग आप के रिश्तेदार हैं? किसी शादी-विवाह में आप लोग जा रहे हैं? बुरकाधारी महिला, जो अब तक बुरका उतार के रख दी थी, बोली- नहीं साहब हम लोग केरल के हैं और वे लोग हमारे परिचय के नहीं हैं। मैंने पूछा, “देखने से पता नहीं चल...

पंछी का भगवान

 पंछी हूं नील गगन में, मैं उड़ जाता हूं, धरती के हर कोने पर घूमने जाता हूं, आसमान की गलियों गलियों को निहारता हूं, धरती पर हर फूलों से मिल आता हूं, विशाल समुंदर के कोने कोने में जाता हूं, उनके अल्लाह ईश्वर ईशा का पता लगाता हूं, क्या उनके भिन्न-भिन्न धर्म और भगवान बने हैं? क्या अल्लाह के नाम पर जलीय जीव जंतु लड़ते हैं? फिर हम धरती के फूलों से पूछता हूं, हिंदू हो या मुसलमान, ब्राह्मण हो या दलित महान, तुम्हें किसने खिलाया है, रंग बिरंगी रूप में सजाया है, पूरी दुनिया में तुम्हें कौन फैलाया है अल्लाह या राम? पूरी दुनिया में सुगंध फैलाते हो, हिंदू हो या मुसलमान? फिर नीले आसमान में उड़ जाता हूं, भगवान की गलियों में भटकता हुआ, पहले उनके जीवन और उनकी सभ्यता समझता हूं, सभी ख़ुदाओं का घर खोजता हूं, सबसे पहले अल्लाह से मिलने जाता हूं, पूछता हूं उनसे इस धरती पर जो इंसान हैं, उनमें से कौन आपके हैं और कौन राम के हैं? किसको मुसलमान और किस को काफिर बनाया है। मैं भगवानों की गलियों में भटकता रहा, वहां अल्लाह ईश्वर खुदा भगवान का, अलग अलग घर नहीं खोज...

जीवन और जगत

 जीवन और जगत एक विचारणीय विषय है,  जरा सोचिए इस संसार का निर्माण कैसे हुआ है , इस ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ और इस ब्राह्मांड के इस संसार में जो जीव जंतु और वनस्पतियों का निर्माण हुआ है वह भी अपने आप में एक चमत्कारी विषय है। सोचने की बात है इस जगत के सारे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का निर्माण, जीवन शैली और विकास में उनका आपसी क्या संबंध है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने की बहुत कोशिश की और बहुत कुछ सीमा तक विकासवाद के सिद्धांत ने इस प्रश्न का उचित उत्तर देने में सफल होता दिखाई देता है। किंतु बहुत से प्रश्नों के उत्तर अभी भी उलझे से दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर इसे इस तरह कहा जा सकता है कि जो इनके बीच एक आवृत्ति क्रमिक संबंध है वह कैसे है? उसका निर्धारण कैसे होता है? वह किस शक्ति के कारण संचालित होता है और क्यों उसमें निरंतरता बनी रहती है? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशने के लिए शायद मानव ने प्राचीन काल से विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते रहे , इसी मानवीय प्रयोग का प्रतिफल है कि विश्व में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों, सभ्यताओं और विभिन्न प्रकार के धर्म आदि का जन्म हुआ। ज...

भारतीय विद्यालयों में होली अथवा फगुआ का रंग

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हमारे देश में रंगोत्सव अथवा होली का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति का एक अंग है रंगोत्सव। भारतीय स्कूलों में इस तरह मनाया जाता है यह होली जिसे फगुआ का उतेसव-

मज़हब का धंधा

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तू मस्जिद जाना छोड़ दे, हम मंदिर जाना छोड़ दे तू मस्जिद जाता रहेगा तो, मंदिर चल चला आएगा। जब मंदिर चढ़ कर आएगा, तुझको मार भगाएगा तू मस्जिद जाना छोड़ दे, हम मंदिर जाना छोड़ दे। जब तेरी संख्या बढ़ जाएगी, तू  मंदिर विनष्ट कर जाएगा मंदिर मस्जिद धर्म का धंधा, हम नहीं अपनाएंगे। तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं। न हिंदू होगा न मुस्लिम होगा, मनुष्यता के इंसान बने प्रेम मोहब्बत से जीना सीखो, रोटी बेटी से जुड़ जाओ। तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं। सब का मालिक एक ही है, यह तू भी जाने मैं भी जानू मजहब की दुकान बंद कर, सच्चे की अलख जगाओ। तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं। सब मानव हैं एक समाना, सूरज चांद हवा और पानी मिलकर कर बनो सब, एक भारतीय जैसे दूध और पानी। तू मस्जिद जाना छोड़ दे, मैं मंदिर जाना छोड़ दूं। महिलाओं की वैज्ञानिक शिक्षा, सभ्यता की यही निशानी                                                    ...