संदेश

कहता है मन

कुछ करने को कहता है मन पर समय का अभाव और दुनियादारी से पीछा कैसे छुड़ाना है , उसी को सोच रहा हूँ लिखने को तो लाखों प्रसंग अभी भी अनछुए पड़े है उस पर लेखनी चलनी है श्री जैन जी से मुलाकात का विवरण भी देना है.

तलाश

हम हैं तलाश में किसी औजार के, जो हारे हुए को विजयी बनाता हो , दिखाता हो सबको अपना चेहरा, उसे असली चेहरे की पहचान करता हो, है कोई जो ऊपर है स्वार्थों की दीवार से क्या इसी में पीसते रहोगे प्यारे. बोलो है कोई औजार जो स्वपनों को, साकार करता है .. आप का दोस्त.

वर्तनी संशोधक

हमें समझ में नहीं आ रहा है कि हमारे ब्लॉग में वर्तनी संशोधक क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। नमस्कार दोस्तों मेहनत का फल मिल गया यौं ही खोजते खोजते सब कुछ मिल गया। कौन कहता है कि खेल खेलता है वो, हमने है खेला जितने के लिया.

श्रीमान वृजेश शर्मा

छन्द सामने जो है, उसे लोग बुरा कहते हैं. जिसको देखा ही नहीं उसको खुदा कहते है. देखना दिल की सदाईं तो नहीं , ऐसी खामोसी में खोया कौन है. ऐ दोस्तों आप ही फरमाओ, हम बुरे तो इस जग में अच्छा कौन है.

आम जन की आवाज़

एक ओर देश भक्तों की कतार है एक ओर गद्दारों की जमात है एक ओर बाबा रामदेव है एक ओर अंग्रेजी सेवक बाबू एक ओर सर्वधर्म शादीवाले एक ओर हर प्रकार से बाटने वाले एक ओर ब्राहम्ण ही प्रतिभा का अधिष्ठाता बना है एक ओर अंग्रेजी है योग्यता और प्रतिभा का मापदण्ड एक ओर धन की तूती बोलती है, देवता विकते हैं एक ओर कालों में क्रीमी कालों की श्रेष्ठता किसी न किसी से श्रेष्ठता रखना फितरत बन गई है इस देश का क्या कहना मन में कपट बगल में राम-अल्लाह-ईसा रखना इस देश का क्या कहना राष्ट्रगान का अर्थ न जाना जन भाषा का विरोध करना अंग्रेजी की जूती सहना इस देश का क्या कहना सब धर्मों की बातें कहना जाति-पाति को आगे लाना चापलूसी गद्दारी करना हिन्दू बनना, ब्राहम्ण होना सही को सही कभी न कहना योग्यता का तमगा पहने रहना जन कल्याण की बातें आए उसमें रोड़ा बन कर अड़ना ब्राहम्ण होना, हिन्दू होना अंग्रेजी की पूजा करना अन्धविश्वास, भाग्यवाद,शोषण को तर्क से सही बताना न्यायधिश, वैज्ञानिक बनकर,घूस खना ऊँचा बन जाना इस देश का क्या कहना हे मूरख यह पहचानों जनता की प्रगति के लिए वैज्ञानिक दृष्टि आवश्यक है राष्ट्रभाषा में शिक्षा होना, विश्वभा

कितना कोशिश कितना पानी

दोस्तों ब्लोग बनाने के लिए हमने कितनी कोशिश किया परंतु अभी भी सफलता नही मिल रही है. तुम कितनी हसिन है यह केवल मैं जनता हूँ, लाख भाग ले हमसे, हम तेरा साथ न छोड़ेगे, लोग चाहते हैं पीना सूरूरी नशीली आंखें, नही देख पाते सौम्य शीतन चितवन कह दो उनसे तुम रोते हुए हँसता रह, हमें तो सवन की बहार मिल गई है.

हिन्दी और अंग्रेजी तथा भारत

हिन्दी और अंग्रेजी तथा भारत एक आलेख वैश्वीकरण का युग है दुनिया एक गाँव में बदल रही है. भारत भी इस दुनिया का एक हिस्सा है अत: यह भी इस प्रक्रिया में सम्मिलित है परंतु भारत देश की जनसंख्या का बहुत ही कम हिस्सा इस खेल में सम्मिलित है जिसका अधिकतम प्रतिशत 10 से कम है जबकि भारत के साथ स्वतंत्र हुआ देश चीन सभी क्षेत्रों में हमसे बहुत आगे जा चुका है. इसका कारण क्या है? क्या इस देश के नीति-निर्माताओं ने सोचा? क्यों अभी तक हम आम नागरिकों को प्रगति की धारा से नहीं जोड़ पाए? ज़रा सोचें-विचारें- यदि हम दुनिया के विकसित और विकासशील देशों को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो तीन वर्ग दिखाई देता है- 1.अमेरिका-यूरोप- अंग्रेजी अन्य निकटतम भाषा-भाषी 2.जापान-कोरिया-चीन-चित्रात्मक भाषा 3.भारत-दक्षिण एशिया- हिन्दी और अन्य भाषा-भाषी 1.अमेरिका-यूरोप- अंग्रेजी अन्य निकटतम भाषा-भाषी: अमेरिका,कनाडा, इंगलैण्ड, फ्रंस, जर्मनी, इटली आदि देशों के नागरिकों के विकास के पिछे भिन्न-भिन्न कारण हैं अमेरिका ,कनाडा और आस्ट्रेलिया आव्रजित (माइग्रेटेड) जनसंख्या के देश हैं यहाँ बहुभाषा समूह